पैसा
पैसे से ही जगत में,
आन बान और शान।
पैसे की ही जुगत में,
फिरता है इंसान ।
फिरता है इंसान ,
बना यह काशी काबा।
थका करत गुणगान ,
बना मम बिगड़ी बाबा।
अवध कयास लगाय ,
कभी गर होए ऐसे
सुघड़ ज़मीन बनाय ,
ज़मीं बिच बोएं पैसे ।
पैसे से ही जगत में,
आन बान और शान।
पैसे की ही जुगत में,
फिरता है इंसान ।
फिरता है इंसान ,
बना यह काशी काबा।
थका करत गुणगान ,
बना मम बिगड़ी बाबा।
अवध कयास लगाय ,
कभी गर होए ऐसे
सुघड़ ज़मीन बनाय ,
ज़मीं बिच बोएं पैसे ।