पैसा बोलता है
कविता :- 6(58) हिन्दी
-: पैसा बोलता है :-
ना मुंह न कान फिर भी पैसा बोलता है ,
बड़ा हो या छोटा हर राहों पर मुंह खोलता है ।
पैसों से ही लोग एक-दूसरे के गुण को तौलता है ,
उसके बाद ही रिश्ता जोड़ता है ।।
पैसों के लिए लोग इज़्ज़त खोता ,
दिन – दुपहरिया क्या वह रात में भी नहीं सोता ।
नेहा के जगह नफरत बोता ,
उसके लिए सब कुछ पैसा ही होता ।।
बिना पैसों का दुल्हण ना उठता ,
मार्ग रोशन हो या अंधेरा पैसा ही रिश्ता गूंथता ।
तब रिश्ता की बंधन जुटता ,
पैसों के नशे में लोग धर्म जात न पूछता ।।
बेईमान ही पैसों से ईमानदार कहलाता ,
और ईमानदार अपनी फैसला के लिए रोज़ अदालत की दरवाजा खटखटाता ।
सब है पैसों का खेल ,
धोखेबाज घूमता बाजार , ईमानदार को ही मिलता जेल ।।
✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता भारत
10-05-2018 गुरुवार कविता :-6(58)
intex से है :-6(058) Readme मो :-6290640716
19-05-2020 मंगलवार कविता :- 16(36)