पैर, चरण, पग, पंजा और जड़
पैर प्रगतिशील हैं,
पैरों ने प्रगति की,
पैर ,
देव-देवताओं के ,
माता-पिता के,
पूज्यों के बने चरण,
उन्हें उपमान मिला,
चरण-कमल का।
कहीं वे परिस्थितिवश,
लोक में ,
पग ही रह गये,
लोकनृत्य में,
श्रृंगार उल्लासित- रासकृत्य में,
वारांगना- नृत्य* में,
बाल चंचल – नृत्त* में ।
ललित कला आरंभ हुई,
नृत्यांगना की शोभा में,
पगों में,
घुँघरू सजे ,
संगीत जुडा,
नारी की मुग्धता के,
इस घुँघरू की थिरकन ने,
कई श्रृंगारिक,
प्रणयकथा,
प्रेमोपाख्यान में,
रसिकों को रस दिया।
मीराबाई भी,
पगों में,
घुँघरू बाँधकर,
भक्तिभाववश,
लोकलाज छोड नाची,
यही इतिहास में,
मीरा की भक्ति,
टिका गयी,
भक्तिभाव बना गयी,
भक्ति की शक्ति दिखा गयी।
पग
कहीं उभरकर,
आगे बढ नहीं पाये,
वे पैर,
पांव कहे गये,
गँवार के चिह्न में,
उपमान मिला- मूर्खता का।
पैरों का कहीं ,
अधोपतन हुआ ,
वे पर* के ख्वाब में,
पैर ही बनकर रह गये,
खर -खरगोश के,
पर, प्रगति ,
नहीं रुकी पैरों की।
चीता,
मार्जार ,
भेड़िया,
मांसाहारियों ने,
इन्हीं पैरों से,
शिकारी बन,
पीछा कर,
तीव्र गति से,
शिकार पर
किया वार।
हिंसा प्रबल हुई ,
पैरों में परिवर्तन ,
रहा जारी,
एक अंग नया ,
विकसित हुआ,
पैरों से अलग,
नोंचकर ,
चोंच से भोज्य ,
उपभोग का,
रक्त – रंजित पंजा।
यहाँ तक पेडों ने,
पैरों को,
नहीं दी तवज्जो ,
उन्हें ,
आदर्श रूप चरण,
पग थिरकन नर्तन,
पांव गंवार उपमान,
हिंसावृत्ति,
पंजे की,
भायी नहीं ।
चलने में असमर्थ,
वृक्षों ने,
अपना अध*-आधार ,
मूल* दूरगामी,
माना,
पुकारा ,
मूल को जड ,
कहा स्वीकार किया।
वहीं अडिग जड़,
मृदा कटाव को,
कर अवरोध,
जलवायु में ,
शुद्धता घोल,
मानव हिताय,
प्राण-वायु दाता बनें।
विचारणीय पैर 🤔
संकेत शब्द : –
1* भावाश्रित नृत्य 2*अभिनय-मात्र 3* पंख 4*निचला 5* मुख्य