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22 Apr 2017 · 1 min read

पेड़

मेरा पेड़

तपती दुपहरी में
जलाता है सूर्य जब
हर इमारत, हर सड़क
तब भी खड़ा रहता अटल
मेरा पेड़ अचल एक ठांव
हर राहगीर, हर रेहड़ीवाले को
देता अपनी ठंड़ी सघन छांव
नहीं देखता कभी
वह गोरे हैं या काले
शहरी हैं या गांव वाले
नहीं पूछता कभी
कौन-सा है धर्म,
कौन-सा है मजहब
कौन-सी है जाति
मानता छोटे और बड़े को
वह अपनी सन्तान
विश्वास है मुझे
पढ़ लिया होगा
उसने मेरे भारत का संविधान।

Language: Hindi
608 Views
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