पेड़
मेरा पेड़
तपती दुपहरी में
जलाता है सूर्य जब
हर इमारत, हर सड़क
तब भी खड़ा रहता अटल
मेरा पेड़ अचल एक ठांव
हर राहगीर, हर रेहड़ीवाले को
देता अपनी ठंड़ी सघन छांव
नहीं देखता कभी
वह गोरे हैं या काले
शहरी हैं या गांव वाले
नहीं पूछता कभी
कौन-सा है धर्म,
कौन-सा है मजहब
कौन-सी है जाति
मानता छोटे और बड़े को
वह अपनी सन्तान
विश्वास है मुझे
पढ़ लिया होगा
उसने मेरे भारत का संविधान।