पेड़ … दंड
पेड़ … दंड
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कागजों पे शब्द अनमोल रोपने थे,
कलम के लोहे से उसपे सपने सींचने थे,
कुछ तेरे हिस्से के कुछ मेरे हिस्से के
कुछ हम सबके हिस्से के सुंदर-सजीले
बदसूरत-बेढंगा इतिहास रचने थे
इस लिए मेरे दोस्त, उन पेड़ों को
कागज़ होने का ही दंड भोगने थे…
सिद्धार्थ