पेड़ को न काटो
कहानी- पेड़ को न काटो
लेखक – डिजेन्द्र कुर्रे (शिक्षक)
एक छोटा सा गाँव की कहानी है।जहाँ लगभग500 लोग निवास करते थे।चारो तरफ हरियाली ही हरियाली था।चिड़िया की चहकना,पशु पक्षियों का आवाज सबके मन आकर्षण करती लोगो का दिल जीत लेती।वहाँ के लोग प्रातःकाल के समय सूर्य का दर्शन करते तथा नियमित योग व्यायाम करते थे।गांव की नजारा देखने के लिए दूर दूर से आते थे।वहां का तालाब कोई स्विमिंग पूल से कम नहीँ था।चारो तरफ सफाई का विशेष ध्यान दिया जाता था।फूलों की बागवानी जो अपने ओर आकर्षित करती मनमोहक दृश्य का नजारा शाम शाम टहलने रोज जाया करते थे।उस गांव में वर्षा भी खूब होता।पानी की कोई कमी नही थी।हवा शुद्ध होने के कारण लोग बीमार नही पड़ते।लेकिन एक बार उस गांव में ऐसी स्थिति पड़ी की त्राहिमाम त्राहिमाम मचने लगा।उस गांव में एक बढ़ाई रहता था। रोज दिन पेड़ काटता और फर्नीचर आर्ट में विभिन्न कलाकृतियों से लकड़ियों की सामग्री बनाकर शहर भेजता।
जिसमे टेबल,कुर्सी, बक्सा,चौखट,दिवान,डायनिंग टेबल ,अलमारी ,मेज,दरवाजा,पलँग,आदि कई तरह के समान बनाता तथा खूब बेचता दिनोदिन उसका तरक्की होते गया।परंतु पर्यावरण संतुलन धीरे धीरे बिगड़ते गया।हरियाली धीरे धीरे वीरान हो गया।वर्षा में कमी हो गयी। तालाब सूखने लगा। पर्यावरण संतुलन बिगड़ गया।फूल की बागान मुरझाने लगे।पर्यटन का केंद्र था। लोग धीरे धीरे आना छोड़ दिये।गांव की स्थिति बहुत खराब हो गई।लोग बीमार भी पड़ने लगे।
इस कहानी से हमे सिख लेनी चाहिए कि पेड़ को न काटे। हरियाली लाने के लिए अधिक से अधिक पेड़ लगायें।और धरा को सुंदर हरियाली बनायें।ताकि हमारा जीवन सुखमय बना रहे।
“पेड़ खूब लगाना हैं,जीवन में खुशियाली लाना हैं।”
डिजेन्द्र कुर्रे(शिक्षक)
शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला पुरुषोत्तमपुर विकासखंड बसना जिला महासमुंद(छ.ग.)