नदी की करुण पुकार
**पेड़ और नदी की गश्त**
हम सब पेड़ के पेड़ हमारा मान लो प्यारे सही यही !
पेड़ कहे मैं नहीं किसी का ! उसका कहना सही नहीं
CO2 जो हम सबने छोड़ी तरु का भोजन वही रही।
तरु ने जो ऑक्सीजन छोड़ी हम सबने भी वही गही।
ज्ञात नहीं पेड़ों को शायद वह किसके है
“एक नदी की करुण पुकार”
हे भद्र मनुज मेरी सुन लो! मैं हूँ दुखियारी..एक नदी।
निर्मलधारा स्वप्न हो गई,मुश्किल जिऊँंगी एक सदी।।
एक समय जब तुम बालक थे,मैं यौवन पर मदमाती।
इठलाती,लहराकर चलती,नागिन सी थी बलखाती।।
कल-कल करते मीठे स्वर से,सबको पास बुलाती थी।
अमृत जैसा नीर पिलाकर,उर में आनन्द समाती थी।।
दूर-दूर से सुन्दर पक्षी,खुश होकर तट पर आते थे।
कलरव करते और नहाते,डुबकी ले छुप जाते थे।।
बकरी हिरन गाय-बछड़े सब,अपनी प्यास बुझाते थे।
मेरे तट पर आ सन्यासी,मस्तक तिलक लगाते थे।।
सबकी प्यास बुझाई थी,परआज बहुत ही प्यासी हूँ।
पेड़ कट गए ताल पट गए , अब तो स्वयं उदासी हूँ।।
याद तो तुम्हें भी होगा प्यारे!नाव पे सैर कराती थी।
सबको हृदयाशीषें देकर , मंजिल तक पहुँचाती थी।।
कद्दू,ककड़ी,लौकी,खीरा,खरबूजा तरबूज जखीरा।
बोकर बीज उगाते रेत में,अरु अंजुलि भर पीते नीरा।।
मैं हूं धरती की जीवन रेखा,ऐसा सबको गाते देखा।
पॉलीथीन प्रदूषण नाशै,ऐसा कोई बादल बरसा दो।।
विनती करूँ आप सबसे मैं,मेरे वो दिन वापस ला दो।
मैं हूँ प्यासी सुरसरि दासी,अब मेरी भी प्यास बुझा दो।।
अब मेरी भी प्यास बुझा दो!तुम मेरी भी प्यास बुझा दो!