*पेड़ों की छाँव बहुत शीत है*
पेड़ों की छाँव बहुत शीत है
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पेड़ों की छाँव बहुत शीत है,
तेज दोपहरी मे वही मीत है।
कल कल कलरव करते पंछी,
पक्षी गाते रहते मधुर गीत हैं।
तरोताज़ा हवा हरपल छोड़ते,
जन-जीवन होता व्यतीत है।
सांसे ही तो जीवन की पूंजी,
जीव जन्तु जन की जीत है।
आजीविका का भी है साधन,
संग्रहित वैभव संपता नीत है।
मनसीरत मत पेड़ों को काटो,
यही सच्चा जीवन संगीत है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)