पेट भर जाते जब फेंकते रोटियाँ
गज़ल
212…..212……212…..212
पीते दारू हैं औ’र नोचते बोटियाँ।
पेट भर जाते जब फेकते रोटियाँ।
दूसरी ओर भूखे तड़पते हैं कुछ,
खाते जूठन के सँग सैकड़ों गालियाँ।1
जिंदगी दे खुदा पर न दे मुफलिसी,
होती खाने मे खाली सदा थालियाँ।2
शव शहीदो के आये थे जब द्वार पर,
टूटकर रोई सब चूड़ियाँ बिन्दियाँ।3
आसमां से भी ऊपर गई चाँद पर,
आज केवल जमीं पर नहीं बेटियाँ।4
लेह लद्दाख में वीर सैनिक डटे,
वो न हारे भले जम गई धमनियाँ।5
आज बेटी है सक्षम खुदा जाने क्यों,
होती जब भी विदा रोती हैं बेटियाँ।6
एक प्रेमी सा जीवन में साथी मिले,
जिंदगी भर चलें प्यार की आँधियाँ।
……✍️ प्रेमी