पेट भर्यां छा जौंका ठसाठस!(गढ़वाली बोली भाषा में)
पेट भर्यां छा जौंका ठसाठस,
देंदा ये उपदेश औरुं तैं सटासट,
बाकी त सब काला बेला छा निपट,
ये ही छां सबसे सठ।
पेट भर्यां छा जौंका ठसाठस,
त्यौं मा ही रैंदी ज्यादा खटपट,
ये ही उपदेश बांटण औंदा चटाचट।
पेट भर्यां छा जौंका ठसाठस,
लगाईं छां त्यौकीं रट,
पैली वालौं न बढायेन ये संकट,
फैल्यां छः जो ये झंझट,
दूर करणा छन यी ये कंटक,
ये ही छंन सबसे परफेक्ट।
पेट भर्यां छा जौंका ठसाठस,
ये क्या जाणौं न कैकी दिक्कत,
मेहनत मजदूरी की कील्लत,
ख़ून पसीना की जिल्लत,
जीवन जीण की फजीहत।
पेट भर्यां छा जौंका ठसाठस,
यों की दुनिया छः विकट,
आपणी सुख सुविधा की रंदी रट,
औरौं त बोलदा चल हट,
करदा रंदा ये सदैं खटपट,
पेट भर्यां छा जौंका ठसाठस।
“अभाव में रहने वालों एवं भौतिक सुख सुविधाओं से संपन्न लोगों की जीवन शैली पर एक नजर इन शब्दों में”