पेट्रोल लोन के साथ मुफ्त कार का ऑफर (व्यंग्य कहानी)
पेट्रोल लोन के साथ मुफ्त कार का ऑफर
वैसे जानने वाले तो मानते ही हैं लेकिन अब यह बात तो आपको भी मान ही लेनी चाहिए कि मैं बचपन से ही टेलेंटेड बंदा रहा हूँ। खोटा सिक्का किस बाजार या दुकान में किस समय और किस दुकानदार के बैठने पर चलेगा, दो अलग-अलग फटे हुए नोटों को जोड़ एक बनाकर बिंदास चलाना, एक बार उपयोग में आ चुके डाक टिकट को दुबारा चलाना, अनजाने लोगों की बारात या पार्टी में घुसकर भरपेट खाने के बाद चुपके से निकल लेना, घर या पड़ोसी के लिए दुकान से सामान लाते समय अपने दस प्रतिशत का कमीशन जोड़ना और मोलभाव की कला से पंद्रह प्रतिशत तक दाम कम करवाकर अपनी सेवा शुल्क कुल पच्चीस प्रतिशत तक वसूलने के बाद भी घरवालों या पड़ोसियों पर एहसान जताना तो मेरे लिए बाएँ हाथ का खेल था। यही कारण है कि बचपन से ही अपने गली-मुहल्ले के बुजुर्गों और शिक्षकों से यह बात सुन-सुनकर बड़ा हुआ कि ‘‘लड़के में टेलेंट तो जैसे कूट-कूट कर भरा है। लड़का बहुत आगे जाएगा।’’ समय के साथ उनका आशीर्वाद भलीभूत भी हुआ।
कसम से प्रायमरी स्कूल में था, तभी सोच लिया था कि बड़े होकर सरकारी नौकरी ही करूँगा। शहर में अपना भी एक सरकारी बंगला होगा, जिसमें अपने बीबी-बच्चों के साथ आराम से रहूँगा। एक सरकारी कार भी होगी, बगल में खूबसूरत बीबी और दो प्यारे-प्यारे बच्चे होंगे, हर वीकेंड पर लाँग ड्राईव पर निकला करेंगे। बाकि सब तो मिल गया, पर एक सरकारी कार की हसरत दिल के अरमान…. बन कर रह गया। दहेज विरोधी विचारधारा का पोषक होने से शादी के टाईम भी कुछ खास हासिल नहीं कर सका। समय के साथ पहले पत्नी फिर बच्चे उकसाने लगे, ‘‘सरकारी कार नहीं मिली, तो क्या हुआ, हम अपनी खुद की कार ले लेंगे।’’
मैंने कहा, ‘‘इस महंगाई के दौर में बड़ी मुश्किल से तो गुजारा हो रहा है। कार की ई.एम.आई. के लिए पैसे कहाँ से आएँगे ?’’
‘‘अगर बिना ई.एम.आई. के कार मिल जाए तो… ?’’ छठवीं कक्षा में पढ़ रहे बेटे ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखें गोल-गोल करके कहा।
तपाक से श्रीमती जी ने पूछा, ‘‘कैसे ? फोकट में कौन देगा कार ?’’
बेटे ने जबरदस्ती अपने चेहरे को गंभीर बनाते हुए कहा, ‘‘लॉटरी मम्मा, लॉटरी, पर पापा इन सब बातों में कहाँ विश्वास करते हैं।’’
श्रीमती जी ने आवश्यकता से कुछ ज्यादा ही उत्साहित हो कर कहा, ‘‘पापा को मारो गोली, ये बताओ करना क्या है ?’’
मुझे घूरते हुए देखकर श्रीमती जी ने बात को संभाला, ‘‘पापा की चिंता तुम मत करो। मैं उन्हें संभाल लूँगी। तुम आगे बताओ।’’
मुझे थोड़ा-सा नरम देख कर बेटे ने समझाना शुरु किया, ‘‘देखो मम्मा, जनरली हर तीज-त्योहार में बड़े-बड़े दुकानदार और फायनेंस कंपनी वाले अपने ग्राहकों को स्कूटर, कार, वाशिंग मशीन जैसे कई प्रकार के लॉटरी का ऑफर देते हैं, तो हम वहाँ से कुछ चीजों की शॉपिंग करके अपनी किस्मत आजमा सकते हैं। टी.व्ही. चैनल वाले फिल्मों और सीरीयल के बीच प्रश्न पूछ-पूछकर कारें बाँट रहे हैं। आजकल तो कई अखबार वाले भी कूपन छापकर दर्जनों की संख्या में कार बाँट रहे हैं। आठ-दस जगह ट्राई मारेंगे, तो कहीं न कहीं न तो अपना नम्बर लग ही जाएगा। वैसे भी हमें तो एक ही कार चाहिए न ?’’ आँखें मटकाते हुए पूछा उसने।
श्रीमती जी को तो मानो मोक्ष का मार्ग मिल गया। बेटे की बलाइयाँ लेती हुई बोली ‘‘वाह ! क्या आईडिया है। इस बहाने कुछ खरीददारी भी हो जाएगी। तुम्हारे पापा को कुछ अखबार भी पढ़ने मिल जाएँगे। टी.व्ही. के फिल्म और सीरीयल्स तो हम देखते ही हैं। अब इन प्रतियोगिताओं में भी भाग ले लिया करेंगे। यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा, तो अगली दिवाली तक घर के सामने गाड़ी भी खड़ी हो जाएगी। क्यों जी आपको क्या लगता है ?’’
अचानक पत्नी से मुझे ऐसे सवाल की उममीद नहीं थी। अब मैं क्या कहता ? अभी तक माँ-बेटे की बात उल्लू की तरह सुन रहा था। हाँ, ये भी सच है कि हर पिता कि तरह खुद को सेर समझते हुए अपने बेटे को मैं भी हमेशा सवा सेर ही बनाना चाहता था, आज उसकी बातों से पक्का भरोसा हो गया कि बेटा एकदम अपने बाप पर ही गया है। बिना समय गँवाए बोल दिया, ‘‘ठीक है, अब तुम लोगों की यही मर्जी है, तो मुझे क्या दिक्कत हो सकती है ?’’
‘‘परंतु पापा, एक दिक्कत हो सकती है ?’’ उसने बात अधूरी छोड़ दी।
‘‘अब भला क्या दिक्कत हो सकती है ? तुम्हारे पापा ने हाँ तो कह दी है न ?’’ श्रीमती जी ने उसे आश्वस्त करना चाहा।
एकदम बुजुर्गों की तरह समझाने लगा हमारा सुपुत्र, ‘‘नहीं मम्मा, दिक्कत इस बात में नहीं है। तीज-त्योहार में शॉपिंग और फायनेंस वगैरह का काम तो आप और मैं मिल-जुलकर कर ही लेंगे। टी.व्ही. के एस.एम.एस. और अखबार के कूपन चिपकाने और जमा करने का काम भी कर लेंगे। लेकिन जब हमारी कार आ जाएगी, तो उसे चलाएगा कौन ? मुफ्त में ड्राईवर मिलने से तो रहा। मेरी तो अभी उम्र ही नहीं हुई है। आपको तो स्कूटी भी ठीक से चलानी नहीं आती। और पापा जी ने भी शायद कभी फोर व्हीलर चलाई नहीं…. ?’’
वाकई समस्या गंभीर थी। इस बात पर तो मैंने कभी विचार किया ही नहीं था। मैं तो बचपन से ही मुंगेरीलाल की तरह हसीन सपने देख रहा था, जिसमें झक्क सफेद वर्दी में एक सरकारी ड्राईवर गाड़ी ड्राईव करते रहता है। फिर भी एकदम नॉर्मल लहजे में बोला, ‘‘तुम उसकी चिंता मत करो। मैं फोर व्हीलर चला लेता हूँ।’’
मेरा कॉन्फीडेंस देखकर श्रीमती जी तो आश्वस्त हो गइंर्, पर शायद हमारे सुपुत्र को कुछ शंका थी, हालांकि मुँह से उन्होंने कुछ कहा नहीं, पर उसकी सकल देखकर मैं समझ गया। आखिर बाप हूँ उसका। पर वह भी बेटा तो आखिर मेरा ही है, सो बनी बनाई बात न बिगड़े, इसलिए उसने भी चुप्पी साधने में ही अपनी भलाई समझी।
खैर, सब कुछ तय हो गया। अब श्रीमती जी और दोनों बच्चों का ज्यादातर समय टी. व्ही. पर फिल्में व सीरीयल्स देखने, एस.एम.एस. करने, मिस्ड काल देने, अखबार में छपी कूपन्स कलेक्शन, कटिंग और पेस्टिंग में बीतने लगा। दशहरा और दीपावली में अच्छी-खासी शॉपिंग भी हो गई। इन सबमें लगभग पच्चीस-सत्ताइस हजार रुपए नगद और अस्सी हजार रुपए का आसान किश्तों में फायनेंस भी हो गया। कई जरुरी-गैरजरुरी चीजों से हमारा घर भर गया। पर अब सपने और भी सुहावने आने लगे।
एक चिंता भी दिन-ब-दिन बढ़ती चली गई, सचमुच जब कार आ जाएगी, तो उसे मैं चलाऊँगा कैसे ? कभी चलाने का मौका तो मिला ही नहीं। इसका समाधान भी खोज निकाला। अब मैं यू-ट्यूब और इंटरनेट से जानकारी जुटाने लगा, साथ ही अपने उन मित्रों, सहकर्मियों से जिनके पास फोर व्हीलर हैं, उनसे अकसर ड्राईविंग की बातें करने लगा। कई ने तो कहा, ‘‘सर आप तो गाड़ी ले ही लो। बहुत आसान है ड्राईविंग। हम आपको तो आधे घंटे में ही ट्रेण्ड कर देंगे।’’ कुछ वरिष्ठ हिंतचिंतकों ने समझाया भी, ‘‘जब तक चल रहा है, फोर व्हीलर से दूर रहो। देख रहे हो पेट्रोल की कीमत रोज-रोज बढ़ती ही जा रही है। ऊपर से तुम तो शहर में रहते हो। एक काल पर ओला कैब और दुनियाभर के ट्रेवल एजेंसी वाले पाँच मिनट के अंदर दरवाजे पर आ खड़े होते हैं।’’
बात तो उनकी सही थी, पर दिल है कि मानता नहीं… ऊपर से बीबी बच्चों को जुबान दे चुका था। वे तो लॉटरी की उम्मीद में हैं। यदि लॉटरी नहीं लगी तो… ? नहीं-नहीं, मैं खुद भी एक गाड़ी खरीदने की औकात रखता हूँ। कितने उम्मीद से हैं तीनों…।
फिर इसी बीच अखबार में पढ़ा कि हमारे शहर में आटो मोबाईल एक्जीबिशन लगा है। एक्जीबिशन मतलब हर तरह की गाड़ियाँ होंगी वहाँ। फिर क्या था एक दिन शाम को चुपके से सज-धज के जा पहुँचा वहाँ। सज-धज के इसलिए क्योंकि अपनी औकात भी तो दिखनी चाहिए न फोर व्हीलर खरीदने और मैंटेन करने की।
एक्जीबिशन में जिस भी कंपनी के स्टाल पर पहुँचता, ऐसी खातिरदारी होती कि लगता था मानों ससुराल पहुँच गया हूँ। ठण्डा, गरम, स्नेक्स सब कुछ… सेल्स गर्ल्स ऐसे इठला रही थीं जैसे नए-नए बने जीजाजी के सामने सालियाँ इठलाती हैं।
खैर, मैंने कई जगह पूछताछ की। सभी स्टाल में बातचीत शुरु करने से पहले एक खूबसूरत सेल्सगर्ल के सामने रखे रजिस्टर में अपना नाम और मोबाइल नम्बर लिखना जरूरी था। फिर मेनका, रंभा, उर्वशी जैसी खूबसूरत सेल्सगर्ल्स गाड़ी की खूबियाँ बताते हुए अंदर-बाहर सब कुछ दिखा देतीं। दो कम्पनी वाले तो आग्रहपूर्वक गाड़ी में बिठाकर एक्जीविशन ग्राऊण्ड के दो चक्कर भी लगवा दिया।
हर जगह एक बात कॉमन थी, कार खरीदना बहुत ही आसान है, पर पेट्रोल की बढ़ती कीमत से मैंटेनेंस खर्चा बढ़ गया है। मैंने एक जगह सेल्स मैनेजर को मजाक में ही कह दिया कि ‘‘क्या ही अच्छा हो, कि कार के साथ पेट्रोल पर भी लोन मिल जाए।’’
वे पहले तो बहुत हँसीं, फिर बोलीं, ‘‘क्या सर जी आप भी न, अच्छी मजाक कर कर लेते हैं।’’
वैसे एक ठीकठाक कार पर आसान किश्तों में, दस से पंद्रह हजार रुपए प्रतिमाह ई.एम.आई. और पेट्रोल का खर्चा पड़ रहा था। लगभग सभी जगह जल्दी मिलने के वादे के साथ विदा लेकर घर पहुँचा। इन सबसे संबंधित पम्फलेट और ब्रोशर से मेरा बैग भर गया था। घर में किसी को कुछ बताया नहीं, पर देर रात तक नींद नहीं आई। असमंजस में था कि कौन-सी गाड़ी ठीक रहेगी ?
रात को बहुत देर से नींद आई। जितनी देर सोया, सपने में कार में ही सवार रहा। ‘‘आज ऑफिस नहीं जाना है क्या ?’’ सुबह साढ़े नौ बजे श्रीमती जी जब झकझोर कर उठाने लगीं, तो नींद में बड़बड़ाते हुए बोला, ‘बस, अभी गाड़ी पार्क करके आया ?’’
‘‘हे भगवान, अब तो नींद में भी गाड़ी। उठो…, साढ़े नौ बज चुके हैं।’’ श्रीमती जी ने पानी के छींटे मारकर उठाया, तो उठ बैठा।
जल्दी से तैयार होकर ऑफिस पहुँचा ही था कि मोबाइल की घंटी बजी। स्वीच ऑन करते ही एक सुमधुर आवाज कानों में पड़ी, ‘‘क्या मेरी बात मि. शर्मा से हो रही है, जो कल एक्जीविशन में हमारे ढिमका शोरूम के स्टॉल पर आए थे।’’
‘‘जी हाँ, मैडम। मैं ही बोल रहा हूँ। कल आपके स्टॉल पर आया था।’’ मैंने संयत स्वर में कहा।
‘‘सर आपके लिए एक बहुत बड़ी गुड न्यूज है। हमारी कम्पनी ने आपके द्वारा दिए गए इनोवेटिव आईडिया के लिए आपको कंपनी की टॉप मॉडल कार ‘ढिंच्चाक’, जिसका ऑनरोड प्राइज लगभग छह लाख रुपए है, वह मुफ्त में देने का निर्णय लिया है।’’
‘‘क्या मुफ्त में ?’’ उसकी बात बीच में काटते हुए बोला। खुशी के मारे उछल पड़ा था मैं।
‘‘जी हाँ, एब्स्ल्यूटली फ्री।’’ उधर से आवाज आई।
‘‘कहीं आप मजाक तो नहीं कर रही हैं मुझसे ?’’ अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।
‘‘सर, मुझे पता था, कि आप ऐसा ही कुछ कहेंगे। वैसे आपका ‘कार के साथ पेट्रोल पर भी लोन वाला’ इनोवेटिव आइडिया हमारे बॉस को बहुत पसंद आया। इसलिए आपको कार मुफ्त में देने का निर्णय लिया गया है। खैर, आगे की कार्यवाही के लिए आपको तीन दिन के भीतर पूरी कागजी कार्यवाही करनी होगी। आप चाहें तो आज शाम को छह बजे हमारे शोरूम आ सकते हैं। हमारे चीफ सेल्स एक्जीक्यूटिव आपसे मिलना चाहते हैं।’’ उसने कुछ और बातें भी कही, पर मुफ्त कार की बात सुनने के बाद तो मेरा दिल गार्डन-गार्डन हो चुका था।
ऑफिस से बाहर निकलकर सबसे पहले मैंने श्रीमती जी को ये गुड न्यूज बताने का निश्चय किया, क्योंकि ऑफिस में लोगों को पता चलते ही पार्टी देनी पड़ता। श्रीमती जी ये गुड न्यूज सुनकर मारे खुशी के पागल हुई जा रही थीं। वह अब जिद पर अड़ गई कि शाम को वे भी साथ में चलेंगी। हमने भी तुरंत हामी भर दी।
‘‘अच्छा ठीक है, रखती हूँ फोन। समय बहुत कम है। मैं जरा ब्यूटी पार्लर से हो आती हूँ। ऐसे ही कैसे चली जाऊँगी वहाँ ?’’ उसने कहा और फोन काट दिया।
अब इंतजार मुश्किल हो रहा था। मन ही मन गुनगुनाने लगा, ‘‘मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू….।’’
खैर जैसे-तैसे लंच ब्रेक का समय हुआ। मैंने भी पत्नी की बीमारी का बहाना मारकर आधे दिन की छुट्टी का आवेदन देकर ब्यूटी पार्लर की ओर रूख किया। बाल कटवाए, डाई करवाया। सेविंग बनवाया।
ठीक पाँच घर पहुँच गया। पत्नी के साथ ही दोनों बच्चे भी एकदम तैयार बैठे थे। चाय पीने की बड़ी इच्छा हो रही थी। किचन में घुसने से मेकअप खराब हो सकता था, इसलिए श्रीमती जी कहा, ‘‘चलते समय रास्ते में ही कहीं पी लेंगे।’’
चूँकि वापसी कार से होनी थी, इसलिए हमने ओला कैब से टैक्सी मंगवा ली। ठीक पाँच बजकर पचास मिनट पर हम ढिमका शोरूम के गेट पर थे। पूछते हुए हम चीफ सेल्स एक्जीक्यूटिव के पास पहुँच गए। बड़े ही गर्मजोशी से उन्होंने हमारा स्वागत किया। ‘‘क्या फेंटेस्टीक आईडिया दिया है सर जी आपने। आपकी इस इनोवेटिव आइडिया से प्रभावित होकर हमारी कम्पनी मार्केट में एक नई स्कीम लांच कर रही है- ‘‘पेट्रोल लोन के साथ मुफ्त कार।’’ इसकी शुरुआत हम आपसे ही कर रहे हैं।’’
हमने पूछा, ‘‘सर, इस स्कीम के बारे में जरा विस्तार से बताएँगे।’’
उन्होंने मिस रोजी, जो उनके बगल में खड़ी थीं, की ओर इशारा किया तो उस बला की खूबसूरत लड़की ने कहा, ‘‘आइए सर, मैं आपको डिटेल देती हूँ।’’
हम उनके पीछे मंत्रमुग्ध भाव से चल पड़े। श्रीमती जी और दोनों बच्चे भी थोड़ा-सा उलझन का भाव लिए मेरे पीछे-पीछे चलने लगे। बगल में ही स्थित उसके भव्य कैबिन में हम पहुँच गए।
‘‘सर हमें कुछ फार्मालिटी पूरी करनी है। इसके लिए मैं आपसे कुछ सवाल पूछूँगी, जिसके उत्तर फॉर्म में भरती जाऊँगी।
‘‘ठीक है। पूछिए, जो भी पूछना है।’’
‘‘सर, क्या मैं जान सकती हूँ कि आप करते क्या हैं ?’’
‘‘जी, मैं सरकारी नौकरी करता हूँ। असिटेंट डायरेक्टर हूँ मंत्रालय में।’’
‘‘और मैडम ?’’
‘‘वे घर में ही प्राईवेट ट्यूशन लेती हैं।’’
‘‘मतलब मैं ये मानकर चलूँ कि आपकी सेलरी सात से दस लाख के बीच होगी ?’’
‘‘जी हाँ।’’
‘‘सर, क्या मैं जान सकती हूँ कि आपके घर और ऑफिस के बीच की दूरी कितनी होगी ?’’
‘‘अठारह किलोमीटर।’’
‘‘यदि हमारी कम्पनी आपको मुफ्त में कार देती है, तो आप प्रतिदिन कार से ही ऑफिस जाना चाहेंगे ?’’
‘‘ऑफकोर्स, जरुर जाना चाहूँगा।’’
‘‘मतलब ये कि आप प्रतिदिन कम से कम छत्तीस किलोमीटर कार चलाएँगे ?’’
‘‘छुट्टियों में नहीं।’’
‘‘ठीक है। मैडम शॉपिंग के लिए भी तो कभी-कभी जाएँगी। कभी-कभी आप बच्चों को भी स्कूल छोड़ने जाएँगे। कभी किसी की शादी, एनीवर्सरी तो कभी किसी की बर्थ डे सेरेमनी में भी तो जाना होगा?’’
‘‘हाँ, ये भी सही है।’’ इस बार जवाब श्रीमती जी की ओर से आया।
‘‘कहने का मतलब ये कि औसतन प्रतिदिन 36 किलोमीटर आपकी कार चलेगी। ठीक है।’’
‘‘जी, इतनी तो चलेगा ही।’’
‘‘अब हम आपके इनोवेटिव आइडिया कार के साथ पेट्रोल पर लोन के परिप्रेक्ष्य में नई स्कीम ‘‘पेट्रोल लोन के साथ मुफ्त कार।’’ की चर्चा करते हैं, जिसमें आपको हमारी कम्पनी की ओर से फ्री में कार दी जाने वाली है।’’
‘‘जी बिलकुल। इसीलिए तो हम यहाँ आए हैं।’’ श्रीमती जी ने कहा।
‘‘हमारी स्कीम के मुताबिक ग्राहकों को पहली बार पेट्रोल लोन सिर्फ दस साल के लिए ही दिया जाएगा। मतलब दस साल तक पेट्रोल मुफ्त मिलेगा। यदि हमारे ग्राहक चाहें, तो आगे भी तीन-तीन साल के लिए रिनुवल करा सकते हैं।’’
‘‘ठीक है। इसका लाभ किस प्रकार मिलेगा ?’’ हमने पूछा।
‘‘सर देखिए, जिस प्रकार आपके पास ए.टी.एम. कार्ड होता है, ठीक वैसा ही एक कार्ड आपको दिया जाएगा। आप देश के किसी भी पेट्रोल पम्प पर इसे स्वाइप कर पेट्रोल भरवा सकते हैं। जितने की पेट्रोल आप भराएँगे, उतना बेलेंस कम होता जाएगा।’’
यह बैलेंस याने पेट्रोल लोन लगभग कितने रुपए का होगा ?’’
‘‘इसे हम प्रतिदिन आपके कार के चलने की दूरी और दस साल आगे की पेट्रोल की संभावित कीमत के आधार पर निर्धारित करते हैं। जैसे यदि आप प्रतिदिन छत्तीस किलोमीटर गाड़ी चलाएँगे, तो इसके आधार पर लिमिट तय होगी।’’ उसने समझाया।
‘‘जरा विस्तार से बताइए प्लीज ?’’ हमने रिक्वेस्ट की।
‘‘जी, आप चाय लीजिए न। ठण्डी हो रही है।’’ उसने याद दिलाई, वरना हम तो उसकी बात और सूरत पर मर मिटे थे। श्रीमती जी कब से अपनी कप खाली कर चुकी थी। दोनों बच्चे मुफ्त की चॉकलेट खाते हुए शोरूम में घूम-घूम आँखें फाड़-फाड़ कर गाड़ियाँ देख रहे थे।
‘‘जी, आप भी लीजिए न। आपकी चाय भी ठण्डी हो रही होगी।’’ हमने आग्रहपूर्वक कहा।
दूसरा कोई अवसर होता तो श्रीमती जी बखेड़ा कर सकती थीं, पर यहाँ मामला कार का था, वह भी मुफ्त में, सो वह भी अन्यथा नहीं ले रही थीं। वैसे मुझे पहले पता होता कि ऐसा डिटेल, ये मोहतरमा अलग चैम्बर में बिठाकर देंगी, तो अकेले ही आया होता। खैर, अब तो जो है, उसी में संतोष करना पड़ेगा।
अब उसने टेबल की दराज से एक कैलकुलेटर निकाला और कहा, ‘‘सर, आप थोड़ा नजदीक, इधर आकर बैठ जाइए न।’’
मेरा मन खुशी से बल्ले-बल्ले करने लगा। एकाएक धड़कनें तेज हो गईं। फिर श्रीमती जी का ध्यान आया।
‘‘जी, जी हाँ।’’ मैंने श्रीमती जी की ओर देखा। कवाब में हड्डी। मुझे इसे यहाँ साथ लाने की मूर्खता पर अफसोस हो रहा था।
श्रीमती जी भी वक्त की नजाकत को समझते हुए बोलीं, ‘‘आप इधर इस चेयर पर बैठ जाइए।’’
अब मैं उसके एकदम करीब जा बैठा। जिंदगी में पहली बार किसी ऐसी बला की खूबसूरत लड़की के पास बैठने का सुअवसर मिला था।
‘‘सर, हम ये मानकर चलते हैं कि आपकी गाड़ी पर डे थर्टी सिक्स किलोमीटर तक चलेगी।’’
‘‘जी।’’
‘‘हमारी गाड़ी की ‘ढिंचाक‘ मॉडल की एवरेज माईलेज 18 किलोमीटर प्रति लीटर है। अर्थात् आपको प्रतिदिन दो लीटर पेट्रोल की जरूरत पड़ेगी।’’
‘‘जी बिलकुल।’’
‘‘टू इन टू थर्टी। मतलब महीने में साठ लीटर पेट्रोल। मतलब ये कि आपको बारह महीने में साठ इन टू बारह कुल सात सौ बीस लीटर पेट्रोल चाहिए।’’ उसने कैलकुलेटर में हिसाब करते हुए कहा।
‘‘जी बिलकुल।’’ मैंने हामी भरी।
‘‘चूँकि पेट्रोल लोन दस साल के लिए दिया जाएगा। इसलिए सात सौ बीस इन टू दस याने सात हजार दो सौ बीस लीटर। अर्थात् आपकी गाड़ी को दस साल में सात हजार दो सौ बीस लीटर पेट्रोल मिलेगी। इसके लिए आपको लोन दिया जाएगा, जिससे आप अपनी सुविधानुसार पेट्रोल भरवा सकेंगे।’’ उसने समझाया।
‘‘जी, बिलकुल।’’ मैंने फिर से हामी भरी।
‘‘आज पेट्रोल की कीमत लगभग 80 रुपए है और यह लगभग प्रतिदिन आठ-दस पैसे की दर से बढ़ रही है। हालांकि कभी-कभी एक-दो पैसा कम भी हो जाती है, जो अगले दिन उसकी भरपाई करते हुए फिर से बढ़ जाती है।’’ वह बहुत ही गंभीर होकर बोल रही थी। पर उसकी बात पर मुझे हँसी आ गई।
‘‘जी, बिलकुल सही फरमा रही हैं आप।’’ मैंने हँसते हुए कहा।
‘‘सर, आपको कुछ अंदाजा होगा कि आज से दस साल पहले पेट्रोल की क्या कीमत थी ?’’ उसने मुझे रहस्यमय दृष्टि से देखते हुए पूछा।
‘‘एक्जेक्ट तो नहीं पता, पर चालिस रुपए के आसपास रही होगी।’’ मैंने यूँ ही कह दिया।
‘‘जी हाँ सर, आपका अंदाजा एकदम सही है। अब आप ही देखिए, दस साल में कीमत लगभग दुगुनी से भी अधिक बढ़ चुकी है। आज जिस प्रकार से पेट्रोल की कीमत बढ़ रही है, हमारी कम्पनी की गणना के मुताबिक आज से ठीक दस साल बाद वह 200 रुपए प्रति लीटर होगी।’’ बोलकर वह मेरा चेहरा ताकने लगी।
‘‘जी हो सकती है। यह कम या ज्यादा भी हो सकती है।’’ मैंने आशंका प्रकट की।
‘‘जी बिलकुल हो सकती है। परंतु इसका टेंशन हमारे कस्टमर को लेने की जरूरत नहीं, क्योंकि एक बार लोन सेंक्शन होने के बाद कीमत में बदलाव का असर हम उन पर पड़ने नहीं देंगे।’’ उसने हमें आश्वस्त किया।
‘‘ये तो बहुत ही अच्छी बात है। बार-बार का झंझट नहीं। एक बार कमिटमेंट कर दिया कर दिया।’’ इस बार बिलुकल सलमान खान की स्टाइल में श्रीमती जी बोल पड़ीं।
‘‘एकदम सही कहा है मैडमजी ने।’’ उसने श्रीमतीजी की ओर प्रशंसात्मक दृष्टि से देखकर कहा।
मैंने श्रीमती जी की ओर देखा, ऐसा लगा मानो कह रही हो, ‘देखा, एक तुम ही हो, जिसे मेरी कोई कदर ही नहीं।’’
मैं अपनी जिज्ञासा रोक नहीं सका, पूछा ‘‘तो मुझे मुफ्त कार के लिए कितने का लोन लेना होगा और उसकी ईएमआई कितनी होगी ?’’
‘‘सर आपको दस साल के लिए सात हजार दो सौ बीस लीटर पेट्रोल दो सौ रुपए प्रति लीटर के हिसाब से कुल चौदह लाख चौवालिस हजार रुपए का लोन दिया जाएगा, जिस पर ब्याज दर दस प्रतिशत देना होगा। आपका ई.एम.आई. प्रतिमाह उन्नीस हजार के आसपास रहेगी। इसके साथ आपको कंपनी की टॉप मॉडल कार ‘ढिंच्चाक’, जिसका ऑनरोड प्राइज लगभग छह लाख रुपए है, उसके लिए कुछ भी राशि अलग से देने की जरूरत नहीं है। बस आप लोन फार्मालिटी के लिए जैसा कि मैंने आपको टेलीफोन पर बता दिया था, दो फोटो, दो क्रास्ड ब्लैंक चैक, सेलरी एकाउंट वाली बैंक पासबुक की की कॉपी छोड़ दीजिए। लगभग एक घंटे बाद फुल पेट्रोल टंकी वाली ‘ढिंच्चाक’ कार से घर जाइए।’’ वह अपनी बात खत्म कर मेरी सकल देखने लगी, जो प्रतिमाह उन्नीस हजार रुपए की ई.एम.आई. बात सुनकर देखने लायक हो गई थी।
मैंने श्रीमती जी की ओर देखा। उनके चेहरे से लगा कि बेकार में ही ब्यूटी पार्लर जाकर ग्यारह सौ रुपए फूँक आई। उन्नीस हजार रुपए की ई.एम.आई. की बात सुनकर उसकी भी अंतरात्मा काँप उठी थी। मैंने दिल की बात दिल में ही दफन करते हुए कहा, ‘‘मैडम, एक्चुली मैं घर से निकलते वक्त खुशी के मारे ये सब डॉक्यूमेंट साथ में रखना ही भूल गया था। कल सुबह सभी डॉक्यूमेंट्स की कॉपी करवा कर आपसे मिलता हूँ। वैसे भी कार कोई बार-बार तो खरीदता नहीं, सो पंडित जी से मुहुर्त भी दिखवा लूँगा।’’
‘‘मुहुर्त और पंडित जी की आप चिंता न करें। हमारे स्टाफ में एक अच्छे पंडित जी भी हैं, जो सिर्फ यही काम-काज करते हैं। उनकी सर्विस सभी कस्टमर्स के लिए एब्स्ल्यूटली फ्री है।’’ उसने हमारे एक बहाने का तोड़ निकाल लिया।
पर हम भी कम घाघ नहीं। सरकारी नौकरी का दस साल का अनुभव कम नहीं होता। कहा, ‘‘अरे वाह ! कितना खयाल रखती है आपकी कम्पनी अपने कस्टमर्स का। पर डॉक्रूमेंट्स तो चाहिए ही न ?’’
‘‘हाँ, सो तो चाहिए ही। आप चाहें तो आज ही ये डॉक्यूमेंट्स सब्मिट कर सकते हैं।’’ उसने अपने अंतिम ब्रह्मास्त्र का प्रहार करना चाहा।
‘‘हाँ, ठीक है। हम आज ही डेढ़-दो घंटे के भीतर ये सारे डॉक्यूमेंट्स घर से लेकर आते हैं।’’ कहकर उठ गया। तब तक श्रीमती जी भी अपने दोनों लाडलों को समेट चुकी थीं।
बड़ी मुश्किल से हम वहाँ से बाहर निकले। मोबाइल से सिम निकाला और उसे तोड़कर फेंक दिया। श्रीमती जी ने पूछा, ‘‘ये क्या किया आपने ? सिम क्यों तोड़ दिया ?’’
‘‘इसलिए कि अब इन लुटेरियों का फोन अटेंड करना न पड़े। जिस छह लाख की कार से मुफ्त देने की बात कर रहे हैं, वह नौ हजार रुपए की ई.एम.आई. पर बाजार में कहीं से भी आसानी से मिल जाएगी। ये पेट्रोल लोन के बहाने उन्नीस हजार रुपए की ई.एम.आई. पर… दो सौ रुपए प्रति लीटर पेट्रोल…। क्या लूट मचा रखी है मुफ्त की कार के बहाने…।’’
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डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़