Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 May 2023 · 2 min read

पृथ्वी

पृथ्वी
*****
हे धरणी! हे पृथ्वी मां! तुझको कोटि-कोटि वंदन!
जीव-जंतु, नर सारे भू पर, उऋण न होंगे आजीवन।
धरती माँ तूं कितनी सुन्दर! कितना कुछ करती हो तुम !
तूंने तो सब कुछ दे रखा है, तुम्हें कभी क्या देते हम?
आजीवन हम ऋणी रहेंगे, तुम से ही सारे सुख- साधन
बनी तूं बिस्तर जन्म समय मां ! गोद में तेरी होय अंत।
सहती सब कुछ शांत भाव,सब कार्य मनुज के तुम पर निर्भर
प्रेम-प्रवाह अविरल अबाध, समदर्शी, सर्व हिताय निश्छल।

नर ने बहुतेरे पाप किए, समभाव सभी को किया वहन
सहनशीलता की तूं मूरत, सदा स्वकर्तव्य के पथ पर।
नर पापकर्म का बढ़ा बोझ,और हुई तनिक जब असंतुलित, तब देखा नर ने क्रोध तेरा, कुछ विचलित, तापित, कंपित।
अनगिन घर तब बने खंडहर,भयभीत हुए मानवजन
डोले पर्वत, सरिता-समुद्र, मेघों ने किया रौद्र गर्जन।
यह थी तेरी मीठी झिड़की मां ! मातृ-अनुशासन का परिचय
ताकि मानवता सीखे-संभले, सब रहें सभ्य और अनुशासित।

नर को तूंने क्या नहीं दिया, भोजन जल फल- फूल वस्त्र
जो कुछ भी जहां ज़रुरी था, लोहा, सोना, लकड़ी, ईंधन।
सुरभि सुगंधित, सुंदर प्रकृति, गिरि-कानन, सरिता- सागर
पशु-पक्षी, प्राणधारी जितने,वांछित जिसको जो सर्वसुलभ।
शुद्ध हवा से प्राणवायु, समरूप सभी को है उपलब्ध
हितकारी वनस्पतियां अनेक, नाना विधि के हैं भेषज।

मिट्टी-पानी अचरज रहस्य, जीवन के ही मूल हैं ये
गर्भ में तेरे क्या-क्या है ! वैज्ञानिकगण हैरान रहे ।
तुमने ऊंचा आकाश दिया, उठाकर सर नर जिए यहां
सूरज-चंदा साथ तुम्हारे, देते सबको उर्जित जीवन।
लगाती रवि के दिनभर चक्कर, सारा जग ले अपने संग
देखकर जननी यात्रा तेरी, मुस्काएं चंदा, नील नभश्चर।

चंदा-सूरज करें ठिठोली, खेलें जैसे आंख- मिचौनी
औचक कभी मेघ आ जाते,बन जाते उनके हमजोली।
कभी दौड़ तारे सब आते,सारे मिलकर तुम्हें सजाते
आधा जग जब सो जाता है,आधे तेरे संग हैं जगते ।
ब्रह्मांड सदा है सर पर तेरे,नीचे जीवधारी सब पलते
हमारे पास समय कब होता, रुककर तेरी कुछ सोचें?

तूं मेरी जननी की जननी, सदा हुए हम ऋणी तुम्हारे
मातु-पिता, पूर्वज, संबंधी, सभी जिए थे तेरे सहारे।
खेले-खाए, रहे यहां, धरा पर आनंदित आजीवन
भूल गए हम तेरे सुख-दुख, प्रातः कर तेरा वंदन। दिन भर धमाल तेरी छाती पर, रात्रिविश्राम अंक में तेरे
न होती नभ में तूं पृथ्वी ! तो बसते कहां जीव ये सारे?
******************************************************
–राजेंद्र प्रसाद गुप्ता , मौलिक/स्वरचित।

1 Like · 150 Views
Books from Rajendra Gupta
View all

You may also like these posts

संवेदना
संवेदना
ललकार भारद्वाज
करगिल के वीर
करगिल के वीर
Shaily
[दुनिया : एक महफ़िल]
[दुनिया : एक महफ़िल]
*प्रणय*
इनायत है, शनाशाई नहीं है।
इनायत है, शनाशाई नहीं है।
Jyoti Roshni
तुम प्रेम सदा सबसे करना ।
तुम प्रेम सदा सबसे करना ।
लक्ष्मी सिंह
sp 113श्रीगोवर्धन पूजा अन्नकूट
sp 113श्रीगोवर्धन पूजा अन्नकूट
Manoj Shrivastava
*नेता जी के घर मिले, नोटों के अंबार (कुंडलिया)*
*नेता जी के घर मिले, नोटों के अंबार (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
तड़प कर मर रही हूं तुझे ही पाने के लिए
तड़प कर मर रही हूं तुझे ही पाने के लिए
Ram Krishan Rastogi
"माँ का आँचल"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
वो भारत की अनपढ़ पीढ़ी
वो भारत की अनपढ़ पीढ़ी
Rituraj shivem verma
4 खुद को काँच कहने लगा ...
4 खुद को काँच कहने लगा ...
Kshma Urmila
मोहब्बत क्या है .......
मोहब्बत क्या है .......
sushil sarna
कितनी मासूम
कितनी मासूम
हिमांशु Kulshrestha
कहो तो..........
कहो तो..........
Ghanshyam Poddar
जीवन संघर्ष
जीवन संघर्ष
Omee Bhargava
वृक्ष मित्र अरु गुरू महान
वृक्ष मित्र अरु गुरू महान
Anil Kumar Mishra
माता सरस्वती
माता सरस्वती
Rambali Mishra
आपकी आहुति और देशहित
आपकी आहुति और देशहित
Mahender Singh
तुम भी तो आजकल हमको चाहते हो
तुम भी तो आजकल हमको चाहते हो
Madhuyanka Raj
4426.*पूर्णिका*
4426.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
I've washed my hands of you
I've washed my hands of you
पूर्वार्थ
कर्मयोग बनाम ज्ञानयोगी
कर्मयोग बनाम ज्ञानयोगी
डा. सूर्यनारायण पाण्डेय
दोहा -
दोहा -
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
Stages Of Love
Stages Of Love
Vedha Singh
मैं तुझसे मिलने का, कोई बहाना ढूढ लेता हूँ ...
मैं तुझसे मिलने का, कोई बहाना ढूढ लेता हूँ ...
sushil yadav
मेरी पहली कविता ( 13/07/1982 )
मेरी पहली कविता ( 13/07/1982 ) " वक्त से "
Mamta Singh Devaa
घर का हर कोना
घर का हर कोना
Chitra Bisht
भूली-बिसरी यादें
भूली-बिसरी यादें
krishna waghmare , कवि,लेखक,पेंटर
ऐसी आभा ऐसी कांति,
ऐसी आभा ऐसी कांति,
श्याम सांवरा
दोहा
दोहा
गुमनाम 'बाबा'
Loading...