पृथ्वी
रत्नगर्भा है पृथ्वी , हमको पोषित करती है ।
अन्न जल दे, नित्य हमको रोपित करती है।।
खेत खलिहानों में गेहूँ बालें जब इतराती है ।
पहन परिधान धानी प्रकृति नाचा करती है ।।
पर इसका सारा नीर तुमने सोख लिया मानव ।
वक्ष स्थल को जगह – जगह बेध दिया दानव ।।
फिर कैसे उम्मीद करते हो आपदाएं न आए ।
भूस्खलन , कोरोना हो घटित क्यों न डराए ।।
कर्तव्य है हमारा माँ जैसा इसका मान रखे ।
लगा कर वृक्ष पर्यावरण को हम सुरक्षित करे ।।
हरियाली को फैला प्रदूषण को दूर मिल भगाएं ।
लिया जन्म धरा पर कुछ इसका कर्ज चुकाए ।।