पृकृति की अनुपम छठा
प्रभात में सूरज की लालिमा अम्बर में छाई है ,
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उठकर, तू निंदिया रानी से आई है ,।
निःशा के चक्षु के पलको में तू खोई है ।
भोर हुआ तो
चमकती प्रकुलित किरणे जंमी पर उतर आई है।
हरी हरी बिछी घास में, सूरजमुखी भी मन्द मन्द मुस्काई है ।
चु चु चिड़िया रानी भी अपने घोसले से बहार आई है ।
कुक रही कोयल ,हुलस रही तितली बयार के साथ पुष्प की सुगंध छिड़कने आई है
धरती अम्बर की छठा देख हर जनमानस के मुख पर लालिमा छाई है
रोना और।मचल जाना भी जीव जगत में हंसी ख़ुशी आनंदित छाई है ।
गुलाबी पंखड़ियों में मोती से आँशु की जयमाला, प्रकति को
पहनाने आई है ।
वहः भोली सी मधुर सरलता ,सरलता प्यारा निष्पाप जीवन,तू मेरे मन का संताप लाई है ।
ऐसा मनोरम दृश्य को देखकर मेरे मन को अतुलित हो आई है
मेरे मन की सोई हुई अभागे, आच्छादित बाते आमोद प्रमोद में आई है ।
प्रवीण के मन में किसी बात, विचार की खयानत आज तक भी नही आई है ।
??प्रवीण शर्मा
ताल जिला रतलाम
टी एल एम् ग्रुप संचालक ताल