पूूछूँगी मैं ?
“पूछूँगी मैं ?
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क्यों पूजते हो फिर ?
नवरात्रा में मुझे !
जब रवानगी देते हो
तुम मेरी ही……
शवयात्रा में मुझे !!
कभी बोरे में !
कभी गटर में !
कभी नाले में !
कभी खड्डे में !
कभी झाड़ी में !
कभी नाड़ी में !
कभी मंदिर में !
कभी मस्जिद में !
जाने कहाँ-कहाँ ?
किस हाल में ?
दर्द से कराहती !!
फेंक देते हो मुझे !!!
इतनी घृणित तो नहीं !
फिर क्यों ??
मेरा ही खात्मा होता है
हर बार !
बार-बार !!
देखूँगी मैं भी…………
कि कितने दिनों तक ?
गला घोंटोगे मेरा !
पूछूँगी उस दिन ?
मैं मानवता के रखवालों से !!
जब होगी कलाई सूनी !
एक भ्राता की !!
पूछूँगी उस दिन ?
जब होगी रूसवाई !
एक माता की !!
पूछूँगी उस दिन ?
जब होगी तन्हाई !
जन्मदाता की !!
थक जाऐंगे ढूढ़ते-ढूढ़ते
बेटे के लिए बहूँ !
तब पूछूँगी मैं !
जब प्रतीक्षा होगी
जामाता की ||
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डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”
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