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17 Feb 2024 · 1 min read

पूस की रात।

पूस की रात।

थरथरा रहा बदन
जमा हुआ लगे सदन,
नींद भी उचट गयी
रात बैठ कट गयी।

ठंड का आघात
पूस की रात।

हवा भी सर्द है बही
लगे कि बर्फ की मही,
धुंध भी दिशा – दिशा
कि काँपने लगी निशा।

पीत हुए पात
पूस की रात।

वृद्ध सब जकड़ गये
हठात अंग अड़ गये,
जिन्दगी उदास है
बची न उम्र पास है।

सुने भी कौन बात
पूस की रात।

समय कठिन कटे नहीं
ये ठंड भी घटे नहीं,
है सिकुड़ गयी शकल
रात-दिन मिले न कल।

न ठंड से निजात
पूस की रात।

गरम-गरम न वस्त्र है
सकल कुटुंब त्रस्त है,
आग की मिले तफन
सेंक लूँ समग्र तन।

धुआँ – धुआँ है प्रात
पूस की रात।

अनिल मिश्र प्रहरी ।

Language: Hindi
204 Views
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