पूर्वोत्तर के शेर
मेडल कांसे का हो या सिल्वर का सही ,
पूर्वोत्तर के बच्चे ही लेकर आते ।
सारे विश्व की खेल प्रतियोगिताओं में ,
जीतकर वही देश का नाम ऊंचा करते ।
जाने कैसे अभावों में रहकर बच्चे ,
इतनी कोशिशें और साहस है जुटा पाते ।
सलाम करते हैं हम इन बहादुर शेरों को ,
जो विपरीत परिस्थितियों की हवाओं में भी ,
अपने अरमानों की शमा है जलाए रखते ।
मगर दुख है इस बात का की उनके साथ ,
बड़े भेदभाव फिर भी हैं होते ।
उनके साथ सरकार और अन्य नागरिक ,
अपनापन का बर्ताव नहीं करते।
हां ! जीत कर आए मेडल तो उनके गांव और
घर की आर्थिक स्थिति की बेहतर की जायेगी ।
और यदि हार गए तो उनकी सुध भी नहीं ली जाएगी ।
आखिर ऐसा क्यों ! हमें कोई बताएगा !
यह भी हैं हमारे देश का अभिन्न हिस्सा ,
तो हम इनके साथ सौतेला व्यवहार क्यों हैं करते ?