पूर्वाभास
सागर शान्त,
आसमां चुप…..
हवा में कोई गूंज नहीं,
लहरों में ठहराव….
हर तरफ सन्नाटा।
मानो…
तूफान आ रहा।
सब कुछ नष्ट हो जायेगा…
कुछ भी नहीं बचेगा…
न कोई रंग,
न निशां…
न उमंग,
न जीवन।
प्रकृति अपनी शक्ल खो देगी,
और…
रह जायेगा, केवल…
रंग-विहीन,
निर्झर,
निर्जीव,
बेस्वाद,
बे-उमंग,
निरउद्देश्य,
अनंत सन्नाटा….
मानव द्वारा किए,
विनाश का,
उपसंहार बन कर…
यदि हम अभी,
कुछ नहीं करते।
आओ…
इस सब को,
रोकने का,
और..
वर्तमान को,
सहेजने का,
सतत प्रयास करें…..
अभी-और केवल अभी।