पूर्णिमा
शीर्षक – पूर्णिमा….. चांद
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हां पूर्णिमा का चांद खूबसूरत होता हैं।
हमारे मन और विचारों को कहता हैं।
शीतल और कुदरत का सहयोग देता हैं।
मन की कामना और भावना कहता हैं।
सच तो हमारे जीवन की सोच होती हैं।
चांद और चांदनी पूर्णिमा कुदरत होती हैं।
हम मानव चाहत में पूर्णिमा को पूजते हैं।
समय के सच को स्वीकार कहां करते हैं।
जीवन और जिंदगी बस एक समय हैं।
न जाने कितनी पूर्णिमा आनी जानी हैं।
बस हम तुम संग साथ हंसी ख़ुशी के पल हैं।
यही मानव जीवन की राह और पूर्णिमा हैं।
आओ हम पूर्णिमा के चांद को देखते हैं।
एक दूसरे को हम समझते और सोचते हैं।
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नीरज कुमार अग्रवाल चंदौसी उ.प्र