पूर्णिमा की रात आई।
मनोरम छंद
मापनी 2122,2122 = 14 मात्रा
पूर्णिमा की रात आई।
बाँटने सौगात आई।
चाँद का सौन्दर्य प्यारा।
दिव्य अनुपम प्रेम धारा।
क्षीर सागर में उतारा।
है बड़ा अद्भुत नज़ारा।
स्वप्न की बारात आई।
पूर्णिमा की रात आई।
चंद्र किरणें स्वच्छ शीतल।
दूध -जैसी श्वेत निर्मल।
अंक में है रत्न उज्ज्वल।
मुग्ध करती रूप चंचल।
कल्पना की बात आई।
पूर्णिमा की रात आई।
धो रही तम मौन होकर।
गूँथती है हार सुन्दर।
स्वर्ग अंबर से उतर कर।
आ गया देखो धरा पर।
प्रेम की बरसात आई।
पूर्णिमा की रात आई।
लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली