पूर्णिमा की चाँदनी…..
खामोशी लिए चाँदनी रात
प्रिया मिलन की तृषित आस,
विरह से व्याकुल हिय से
निकलती गर्म सी उच्छवास,
शरद पूर्णिमा की चाँदनी
फिजाओं में बहार फैलाती है।
अंतस को ठंडक पहुंचाती है॥
झिलमिल करते हुए सितारे
चाँद की किरणों से भरी रातें,
ख्वाबों की दुनिया सजाए
करती रही सपनों की बातें,
मन कानन के प्रांगण में
भविष्य की राहें दिखाती है।
अंतस को ठंडक पहुंचाती है॥
पगडंडियों पर नही दिखते
दुर तक अंतरंग परछाईयां,
पायलों की छ्म – छम से
गुंजती कानों में शहनाइयां,
ज्ञात पदचापों की आहटें
मिलन की प्यास बुझाती है।
अंतस को ठंडक पहुंचाती है॥
निहारते अपलक नयन
शुभ्र धवल सी रातों में,
ओढ़कर प्रीत की चुनरिया
कौमुदि आई मेरे हाथों में,
मदहोश कर जाती धरा को
संग पोर – पोर महकाती है।
अंतस को ठंडक पहुंचाती है॥
मधुर रश्मियों में दमकता
मुस्कुराता तुम्हारा चेहरा,
कलियां दीदार को तरसे
चाँद लगा दिया है पहरा,
बिन चाँद के वो चाँदनी
एक पल भी ना रह पाती है।
अंतस को ठंडक पहुंचाती है॥