पूर्णिका.🙏🙏🙏
उनकी बेरुखी को भी रज़ा समझे,
कितने नासमझ थे ये क्या समझे।
दिखतीं है उसमें परछाईयां मेरी,
उनकी आँखों को आइना समझे।
मँझधार में कश्ती डुबाई थी उसने,
कितने नादाँ थे उसे नाखुदा समझे।
बात मरने के बाद समझ में आई,
उसने जो ज़हर दिया दवा समझे।
तंज जब-जब भी कसे थे उसने,
उसकी हर बात को मरहवा समझे।
उसकी अक्ल के भला क्या कहने,
चढ़ते सूरज को भी जो दिया समझे।
अक्ल पर उसकी तरस आता है विशाल”
इश्क और प्यार को जो ख़ता समझे।
________विशाल _________