पूत सपूत काहे धन
मैंने सुना है *पूत सपूत काहे घन संचय,
पूत कपूत काहे ….*
ये कथन सारे का सारा आधे अधूरा है,
हम भी किसी के संतान है, हमारे भी संतान है,और सिलसिले बढते रहेंगे,
हर्ष का अपना जीवन है, जीवन बहुआयामी व्यक्तित्व के चर्चित होते है, हर्ष अपने जीवन में भविष्य को लेकर चिंतित बिल्कुल नहीं है, वह बिल्कुल सहज है,
हर्ष के पिता को घर खर्च पूरा करने से फुर्सत नहीं है, हर्ष की शिकायत रोजाना उसे सुननी पड़ती है,
आजकल शिक्षित महिलाएं गृहस्थ जीवन को संभाल रही है, वे अपनी नाकामियों को बच्चों के स्तर पर आंकती है, और अपने जीवन को उन पर थोपना चाहती है,
वे सामाजिक स्तर पर जो घटनाएं घट रही है, अपने बच्चों को रखकर सोचती है, वे चाहती है, बच्चे ऐसे करे, वैसे करे, अर्थात उनका अनुकरण,अनुशरण करें, जो आपका अनुभव है, बच्चों की ऊर्जा से मेल नहीं खाता है,
नतीजन बच्चे विद्रोही बन जाते हैं,
लोगों का काम है कहना
जब सही गलत का कोई विषय ही ना हो,
बात बिन बात उन्हें, सुनना ही है तो भले, कौन ??? खैर
आजकल के बच्चे पैरवी तो मांगते है
करना भी चाहिए, पर व्यर्थ की खुशामदी, मेरी समझ से परे है,
आजकल शिक्षा बहुमुखी प्रतिभा के विकास के नाम पर जैसे माता-पिता को अधिक पढाई मे शामिल करती है,
स्कूल, ट्यूशन, फीस,हर वर्ष बदलती ड्रैस, किताबें, सालभर के स्टेशनरी सामान, परिणाम स्कूल के नहीं, घर के अनुरूप ही मिलते हैं,
लगभग दो वर्ष में फीस बराबर जाती रही, पापा का व्यापार, व्यवहारिक गतिविधियाँ, आज से पहले ऐसी कभी नहीं रही,
फीस भरने तक के टोटे,
रोजमर्रा की आवश्यक चीजें जैसे आसमान छू रही हो,
जीवन बीमा की किस्त, निजी लोन,ऊपर से मकान की किस्तें, जीवन बीमा पॉलिसी पर लिए लोन
एक बाप जो कर सकता है, अपने फर्ज निभाते हुए, कभी परिवार को अहसास नहीं होने देते, घर के मुखिया के जो श्रेष्ठ गुण होते हैं,
हर्ष अपने पिता में देख रहा था,
पापा के निजी जटिलताओं को जैसे वो अनुभव में बदल रहा हो,
अब इन दोनों अवस्थाओं को पहचानने से पहले पैसों की आवश्यकता तो पडती ही है.
जिनका जिक्र मैंने कहानी की शुरुआत में किया है,
*पूत सपूत काहे…
पूत कपूत काहे…
धन संचय*
शिक्षा:- बच्चों पर शक ना करें.
उनकी परवरिश ठीक ढंग से करें.
Renu Bala M.A(B.Ed.)