पूजा
हुआ सबेरा खूब नहाया,
जाना था करने पूजा।
तन में मन में इष्ट बसे थे,
दिखता नहीं था दूजा।।
रोरी अक्षत थाल सजाकर,
मस्तक खूब नवाया।
बाहर आ जूते न पाया,
मन बड़ा घबराया।।
किसी ने बटुआ,चैन किसी ने,
पादुका खो शरमाया।
कैसे प्रभु दर चोर भला,
ऐसी हरकत कर पाया।।
क्या थी चोर की पूजा सच्ची,
या हम सब की खोटी।
अबोध शिशु गुम है देखो,
माँ दर पर है रोती।।
प्रभु की मूरत इतनी प्यारी,
मूक बन सब देखे।
वाचली करतूतों को भी,
भगवन खूब निरेखें।।
लूटपाट प्रभु दर भी होती,
मानव जग में ऊँचें।
मासूमों का गर्दन काटे,
सीधे का माथा कूँचे।।
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अशोक शर्मा, कुशीनगर