पूछो ज़रा दिल से
पूछो ज़रा दिल से ,क्या है मुझसे मोहब्बत ।
नहीं है तो कह दो ,जो दिल में है वहशत।
कैसे यकीं दिलाए ,अपनी वफ़ा का हम
हर रिश्ते में बाकी ,अब बची है तिजारत
अपनी नाकामियों से भी कुछ सीख ले
इन से ज्यादा कौन दे सका है नसीहत।
खौंफ खुदा का ग़र मन में बसा ले हम
बड़ी इससे नहीं है कोई भी इबादत।
दिल का आईना ,पाक साफ रखना तुम
इसी से जमेगी ,तेरे किरदार की अजमत।
सुरिंदर कौर