पुस्तक
पुस्तक
जीवन की पुस्तक में ना जाने –
कितने अक्षर,
कितने शब्द,
कितने वाक्य,
कितने अनुच्छेद,
कितने गद्यांश,
कितने पध्यांश
कितने निबंध
कितने आलेख
कितनी कवितायेँ,
कितनी कथाएँ
और ना जाने कितने संकलन
सम्मिलित हुए हैं।
और इन सभी विधाओ में ना जाने कितने अल्पविराम,
कितने प्रशन चिन्ह और ना जाने कितने
विस्मयादिबोधक चिह्न !
पढ़ती हूँ जब कभी मैं अपनी जीवन-पुस्तक,
तो बस एक ही ख्याल नित-नित देता हैं दस्तक-
के पूर्ण विराम से पहले
जो मनपसन्द फूल सजाने हो गुलदस्ते में,
तो प्रत्येक फूल स्वयं ही चुनना होगा,
जीवन एक मशीन है बुनकर की
जिसका हर सूत खुद ही कातना होगा,
और जो वस्त्र-शस्र कवच हौसलों वाला बना लिया-
तो फिर जीवन रण में –
ना कोई हानि होगी,
ना कोई बाधा होगी,
सब चक्रव्यूह तोड़ पाओगे तुम,
अभिमन्यु से आगे बढ़ पाओगे तुम,
और निश्चय ही रणबाँकुरे कहलाओगे तुम!
सोनल निर्मल नमिता