Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Apr 2017 · 3 min read

पुस्तक समीक्षा

   ” पुस्तक समीक्षा ”
          —————————–
पुस्तक : बचपन पुकारे ! बालक मन के भोले गीत 
लेखिका : विमला महरिया “मौज ”
              अध्यापिका ,राजकीय सावित्री बालिका उ०मा०वि० ,लक्ष्मणगढ़ (सीकर)
प्रकाशक : को-ऑपरेशन पब्लिकेशन्स (साहित्यागार), जयपुर (राज०)
संस्करण : 2016
पृष्ठ संख्या : 104
मूल्य : 150/-
—————————————————–

राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र की युवा एवं लब्धप्रतिष्ठित कवयित्री विमला महरिया “मौज” का काव्य-संग्रह ” बचपन पुकारे ! बालक मन के भोले गीत ” इनका चतुर्थ काव्य-संग्रह है ,जो कि पूर्ण रूप से बालकों को समर्पित है | प्रस्तुत काव्य-संग्रह में लेखिका ने कुल 43 कविताओं के माध्यम से बच्चों को पठनीय तथा अनुकरणीय सामग्री  उपलब्ध करवाई है ,जिसमें ‘प्रकृति-संस्कृति-संस्कार’ का बेजोड़ संगम देखने को मिलता है | काव्य-संग्रह की शुरूआत “प्रार्थना” शीर्षक से शुरू करके कवयित्री ने यह बताने का प्रयास किया है कि बच्चों का सर्वांगीण विकास करने हेतु  सर्वप्रथम उनकी सोच और मानसिकता का उत्कृष्ट विकास किया जाए | इसके लिए जरूरी है कि उनके अन्त:करण की एकाग्रता और शुद्धता पर बल दिया जाए , ताकि संस्कार और नैतिक गुण निर्बाध गति से उनके व्यक्तित्व में समाहित होते रहें | इसी तरह संस्कार और संस्कृति की महत्ता पर बल देते हुए बच्चों को “नमन करो / मेरे शिक्षक” शीर्षक कविताओं में माता-पिता , दादा-दादी , शिक्षक और बड़ों का सम्मान और आदर की भावना को प्रबल करने हेतु भी कवयित्री का प्रयास सराहनीय है | इसके साथ ही प्रकृति की महत्ता और उसके स्नेहिल एहसास को बालकों में उद्भूत करने हेतु “धरती/सूरज/चंदा मामा/मंथन पेड़ों का ” इत्यादि कविताओं के माध्यम से सरल ,सहज शब्दों में रोचक और सशक्त वर्णन किया है | जहाँ कवयित्री ने मेरा गाँव / मेला / मेरे अपने / मेरे रिश्तेदार और अपने मददगार शीर्षक कविताओं में ग्रामीण संस्कृति और समाज की आधारभूत विशेषताओं का वर्णन करते हुए इनके माध्यम से बच्चों के मानस पटल पर ग्रामीण संस्कृति की छाप छोड़ी है , वहीं घरेलू पशु / फलों की महफिल /अनाज का कुनबा और आलू की बारात शीर्षक कविताओं के द्वारा रोचक और यथार्थवादी शब्द-चित्रांकन करने में भी सफल हुई हैं |
              कवयित्री ने अपने काव्य-संग्रह में प्रकृति के प्रति जनजागरूकता और चेतना का स्वर मुखर करने के लिए झील बन गई /मंथन पेड़ों का / नदी नीर में शीर्षक कविताओं के माध्यम से प्रकृति, पर्यावरण और जैवविविधता का संरक्षण करने हेतु बच्चों के भोले मन में प्रेरणास्पद और संरक्षणवादी विचार डालने का सशक्त प्रयास किया है , जो कि प्रसंशनीय है | इसी के साथ ही खाना खाओ / गटगट घूँट / नहीं बनोगे जॉकी / स्वच्छ आदतें स्वस्थ शरीर और खेल खिलाड़ी शीर्षक कविताओं के माध्यम से  बच्चों को स्वच्छ और स्वस्थ रहने का संदेश दिया है | स्वयं कवयित्री के शब्दों में — 
भागा-दौड़ी हो जाए……. कसरत थोड़ी हो जाए | अहा वर्णमाला और व्यंजन नामक कविताओं में अक्षर और शब्दों का रोचक और बेजोड़ वर्णन इनके लेखन में चार चाँद लगा देता है | वर्दी पर तारे और बचपन पुकारे ! शीर्षक कविताओं के माध्यम से  बच्चों की नई उमंग ,नई सोच और नव-सृजन के साथ ही आलस्य और बंधन रहित बचपन की सोच को उजागर करते हुए लेखिका ने आह्वान किया है कि बचपन को उन्मुक्त रूप से विकसित होने दें | स्वयं लेखिका के काव्यात्मक शब्दों में ……..
नव सृजन के पथ पर बढ़ते ,
नन्हें कदम हमारे !
मत जकड़ो जंजीरों में !!
खोलो द्वार हमारे ||
                कवयित्री के लेखन की प्रकाष्ठा तब व्यक्त होती है ,जब इन्होंने “रामू काका ” के माध्यम से मार्मिक और संवेदनशील वर्णन करते हुए ये बताने की कोशिश की है कि किस प्रकार आधुनिकता के वशीभूत होकर माता-पिता और अभिभावक अपने बच्चों के लिए समय नहीं निकाल पाते !! स्वयं लेखिका ने बालक मन के भोले शब्दों के द्वारा ये कहलाया है– 
रामू काका आओ ना ,
थोड़ा सा दुलराओ ना !
………………………
दूर बहुत हैं मम्मी-पापा !
उनसे कभी मिलाओ ना !!
        समग्र दृष्टि से कवयित्री विमला महरिया “मौज” की काव्यात्मक और भावनात्मक अभिव्यक्ति अपने आप में बोधगम्य , प्रेरणास्पद , अनुकरणीय और अनूठी है | इनके उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाओं के साथ………
————————————-
डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”
लेखक ,समीक्षक एवं जैवविविधता विशेषज्ञ
ढ़ोसी, खेतड़ी (झुन्झुनू)
       

Language: Hindi
744 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

हिन्दी
हिन्दी
Pushpa Tiwari
हालातों से युद्ध हो हुआ।
हालातों से युद्ध हो हुआ।
Kuldeep mishra (KD)
दुनिया के हर क्षेत्र में व्यक्ति जब समभाव एवं सहनशीलता से सा
दुनिया के हर क्षेत्र में व्यक्ति जब समभाव एवं सहनशीलता से सा
Raju Gajbhiye
*जब तू रूठ जाता है*
*जब तू रूठ जाता है*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
Holiday
Holiday
Dr. Vaishali Verma
हाय वो बचपन कहाँ खो गया
हाय वो बचपन कहाँ खो गया
VINOD CHAUHAN
याद है पास बिठा के कुछ बाते बताई थी तुम्हे
याद है पास बिठा के कुछ बाते बताई थी तुम्हे
Kumar lalit
*अंतःकरण- ईश्वर की वाणी : एक चिंतन*
*अंतःकरण- ईश्वर की वाणी : एक चिंतन*
नवल किशोर सिंह
सिर्फ विकट परिस्थितियों का सामना
सिर्फ विकट परिस्थितियों का सामना
Anil Mishra Prahari
कोमल अग्रवाल की कलम से ' इतना सोचा तुम्हें '
कोमल अग्रवाल की कलम से ' इतना सोचा तुम्हें '
komalagrawal750
मर्यादा पुरुषोत्तम राम
मर्यादा पुरुषोत्तम राम
Ramji Tiwari
*जागा भारत चल पड़ा, स्वाभिमान की ओर (कुंडलिया)*
*जागा भारत चल पड़ा, स्वाभिमान की ओर (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
वर्तमान समय में रिश्तों की स्थिति पर एक टिप्पणी है। कवि कहता
वर्तमान समय में रिश्तों की स्थिति पर एक टिप्पणी है। कवि कहता
पूर्वार्थ
जज्बात
जज्बात
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
"बल और बुद्धि"
Dr. Kishan tandon kranti
😊मुक्तक😊
😊मुक्तक😊
*प्रणय*
-शेखर सिंह
-शेखर सिंह
शेखर सिंह
लोगों के रिश्तों में अक्सर
लोगों के रिश्तों में अक्सर "मतलब" का वजन बहुत ज्यादा होता है
Jogendar singh
शॉल (Shawl)
शॉल (Shawl)
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
सामाजिक न्याय
सामाजिक न्याय
Shekhar Chandra Mitra
फ़रेब
फ़रेब
Sakhi
मेरे अल्फाज़
मेरे अल्फाज़
Dr fauzia Naseem shad
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Neelofar Khan
6. *माता-पिता*
6. *माता-पिता*
Dr .Shweta sood 'Madhu'
2836. *पूर्णिका*
2836. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Dr Arun Kumar shastri ek abodh balak Arun atript
Dr Arun Kumar shastri ek abodh balak Arun atript
DR ARUN KUMAR SHASTRI
सर्वोपरि है राष्ट्र
सर्वोपरि है राष्ट्र
Dr. Harvinder Singh Bakshi
जिसकी भी आप तलाश मे हैं, वह आपके अन्दर ही है।
जिसकी भी आप तलाश मे हैं, वह आपके अन्दर ही है।
Yogi Yogendra Sharma : Motivational Speaker
फेसबूक में  लेख ,कविता ,कहानियाँ और संस्मरण संक्षिप्त ,सरल औ
फेसबूक में लेख ,कविता ,कहानियाँ और संस्मरण संक्षिप्त ,सरल औ
DrLakshman Jha Parimal
सूरज सा उगता भविष्य
सूरज सा उगता भविष्य
Harminder Kaur
Loading...