*पुस्तक समीक्षा*
पुस्तक समीक्षा
*पुस्तक का नाम : निष्काम कर्म (परम पूजनीय श्री राम प्रकाश सर्राफ की जीवनी)
*लेखक एवं प्रकाशक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा , रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
*प्रकाशन का वर्ष : 2008
समीक्षक : प्रोफेसर ओम राज
255, भगवतीपुरम
आर्यनगर, काशीपुर (उत्तराखण्ड) पिन: 244713
( प्रोफेसर ओमराज जी रामपुर उत्तर प्रदेश में लंबे समय तक रहे हैं)
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विदित वर्तमान की विभूति राम प्रकाश जी
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प्रिय रवि प्रकाश जी,
आप द्वारा प्रेषित परम पूज्यनीय श्री राम प्रकाश सर्राफ की जीवनी ‘निष्काम कर्म’ प्राप्त हुई। स्व. श्री रामप्रकाश सर्राफ के प्रेरणादायक व्यक्तित्व एवं अनुकरणीय कृतित्व को ज्ञापित करने वाली कृतिः – निष्काम कर्म की रचना व प्रकाशन द्वारा आपने ‘एक योग्य पितृभक्त पुत्र के दायित्व का निर्वाह ही नहीं किया है, वरन् एक शारदासिद्ध लेखक के रूप में ‘एक दिवंगत महान व्यक्ति के चरित्र, व्यवहार तथा जीवन-दर्शन’ के उन अनछुए पहलुओं को सार्वजनिक किया है, जिनसे प्रेरणा और ऊर्जा प्राप्त कर निरंतर ह्रास होते हुए सामाजिक आदर्शों के विघटन की वर्तमान अवस्था में हम अपने व्यक्तिगत आत्म-निर्माण और समाज को पथप्रदर्शन के लिए नए आशा-दीप प्रज्वलित कर सकते हैं।
‘गीता’ में व्यहृत निष्काम कर्म ही स्व. रामप्रकाश जी की जीवनी
हेतु सर्वाधिक सार्थक शीर्षक हो सकता था। स्व० राम प्रकाश जी के हृदय में ‘सद्दन ख़ाँ’ जैसे व्यक्ति के लिए आदरपूर्ण भावनात्मक मोह के कृति द्वारा रहस्योदघाटन ने यह भ्रांति दूर कर दी है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा के प्रति तन, मन, धन से समर्पित हिन्दु व्यक्तिगत धर्म और आस्था के पूर्वाग्रह से मुक्त, मानवीय गुणों और इंसानी कद्रों के प्रशंसक होते हैं।
आपने भी पिता द्वारा प्रदत्त अनुवांशिक सांप्रदायिकता से मुक्त व्यक्तिगत मानसिकता का परिचय कृति द्वारा दे दिया है। माननीय आजम खॉं आज सब कुछ होते हुए भी वह सब कुछ नहीं हैं, जो प्रदेश में सपा के शासन के समय थे। न आज उनकी प्रशस्ति किसी को लाभान्वित कर सकती है और न उनकी आलोचना किसी का व्यक्तिगत अहित कर सकती है। चाहते तो आप किसी पूर्वाग्रह से संचालित होकर सुंदर लाल इंटर कॉलेज में आज़म खाँ के योगदान को नकार सकते थे, किन्तु यह शब्द – आजम खाँ का दान निसंदेह बहुत अधिक था, कम से कम मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
टैगोर शिशु निकेतन और सुंदरलाल इंटर कालेज रामप्रकाश जी की ऐसी देन हैं, जिसका मूल्यांकन मेरे समकालीन ही कर सकते हैं। नगर के प्रतिष्ठित डाक्टर, वकील यहाँ तक आई.ए.एस तथा आई.पी.एस. भी उन्हीं संस्थाओं से निकले हैं।
‘जीवनी-साहित्य-विधा’ के अंतर्गत आपकी इस कृति का मैं हार्दिक प्रशंसक हूँ और वह इसलिए क्योंकि, प्रारंभ से अंत तक स्वर्गीय का जो चित्रण है, वह इतना प्रभावी है कि राम प्रकाश जी मेरी आँखों को चलते फिरते दिखाई देते हैं। दूसरी बात यह है कि आटोबायग्राफी में आत्मकथा का लेखक अपने जीवन के निर्बल पल को जानबूझ कर बचा जाता है – कन्फेशनल एलीमेन्ट समाप्त हो जाते हैं, आत्मकथा पुराण की कथा मालूम होने लगती हैं। बायग्राफी’ अर्थात अन्य किसी के जीवन चरित्र और उसके कार्यों को प्रकाशित करने वाला लेखन भी सर्वदा निष्पक्ष नहीं होता। लेखक या तो व्यक्ति के प्रति राग से ग्रस्त होता है या फिर द्वेष से। राग की अनुभूति व्यक्ति के यथार्थवादी वास्तविक जीवन को ‘मारवेलस’ बना देती है। समाज के मार्गदर्शन के लिए हमें देवता नहीं इंसान चाहिए। आपने निष्काम कर्म में घटित यथार्थ का चित्रण किया है, विशुद्ध तथ्यात्मक सत्यापित विवरण दिए हैं, आपने वास्तव में जीवनी की रचना की है, प्रशस्ति की नहीं।
स्व० राम प्रकाश जी मेरे लिए विगत इतिहास के पात्र नहीं, विदित वर्तमान की विभूति रहे हैं। वह शालीन थे, सुसंकृत थे, मधुर भाषी थे किन्तु स्पष्ट-वादी! स्थिति और परिस्थिति का धैर्यपूर्ण आत्मिक बल द्वारा सामना करने वाले व्यक्ति । प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल बनाने की अनोखी कला के सिद्ध पुरुष। वह आदर्शवादी थे, किन्तु व्यवहारिक, अव्यवहारिक आदर्शवादी नहीं। उन्हें लक्ष्मी का वरदान प्राप्त था; चाहते तो अर्जित धन और सम्पत्ति द्वारा वह कोई फैक्ट्री लगाते और नगर के उद्योगपतियों की सूची में अपना नाम जोड़ जाते। शिक्षण
संस्थाओं की संस्थापना के पीछे एक सार्थक सामाजिक दर्शन था, और एक निष्काम योगी का फलित योग।
अंत में स्व० राम प्रकाश जी की मधुर स्मृति को मैं जलालउद्दीन रूमी की ‘मसनवी’ की इस पंक्ति के माध्यम से अपने मस्तिष्क में तर और ताज़ा करता हूॅं:
‘बिसयार खूबाँ दीदाअम, लेकिन तू चीज़े दीगरी ( देखे हैं बहुत से खूबसूरत, लेकिन तू चीज़ ही दूसरी है)
समस्त शुभेच्छाओं सहित
ओमराज