Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Sep 2018 · 3 min read

पुस्तक समीक्षा

पुस्तक समीक्षा
कृति:- दीपक तले उजाला
पृष्ठ:-94
मूल्य:-100/-
समीक्षक:- राजेश कुमार शर्मा”पुरोहित”
शिक्षक एवम साहित्यकार
लखनऊ की कवयित्री उर्मिला श्रीवास्तव की यह आंठवी कृति “दीपक तले उजाला” पढ़ी। इस कृति की सभी कविताएँ मानव को कुछ न कुछ सीख देती है। इस कृति की पहली काव्य रचना चार घड़ी है। यह जीवन क्षण भंगुर है। जीवन कब तक है किसी को पता नहीं। यह सच्चाई हमेशा याद रहे। ये मानव तन मिलना दुर्लभ है। यदि मिला है तो इसमें अच्छे कर्म करें। बदला,अनकही ,खुद सर,36 की गिनती जैसी रचनाओं से श्रीवास्तव ने जीवन की अच्छाइयों को बताने का प्रयास किया है।
भाषा शैली विचारात्मक लगी। पाठकों को सोचने के लिए, चिंतन के लिए तैयार करती कविताएँ बहुत ही चिंतनपरक लगी। कवयित्री ने अनुकूल भाषा का सुन्दर ढंग से प्रयोग किया है। सीधी,सरल शीघ्र ग्राह्य भाषा है।
प्रस्तुत कृति की छंदमुक्त रचनाएँ काव्य के मौलिक गुणों रस, अलंकार,गुण ,रीत लिए हुए साहित्यिक मूल्यों को पूरा करती प्रतीत हुई।
पुस्तक का शीर्षक अटपटा लगा लेकिन कृति को पढ़ने के बाद लगा कि दीपक तले उजाला की कितनी सार्थकता है।
ईर्ष्या कविता में कवयित्री कहती है”वक्त है हर हाल में मिल लेते हैं। चार पल मेरे नहीं है क्या अजीब सी बात है।। आज हम एक दूसरे से औपचारिकता वश मिलते हैं। रिश्तों में मिठास नहीं अपनापन नहीं। लोगों के पास समय नहीं।
जिंदगी की आपाधापी से दूर की कल्पना करती ये पंक्तियाँ मन को सुकून देती है”चार दिनों का मेला है प्यार का मौसम चलने दे।मेरा तेरा भूल जाए तो मधुर जिंदगी बन गई। आज हम ये मेरा है,ये तेरा है यानी स्वार्थपरता में जी रहे हैं। जब अंत समय आता है सब यहीं रह जाता है। जितने दिन की जिंदगी मिली है प्यार से जीना चाहिए। बहुत अच्छा संदेश देती ये पंक्तियां।
वृद्ध वृक्ष का बसंत,न कुछ समझा न कुछ जाना।वक्त है बदला जैसे आए हैं पतझड़ बसंत पर,कभी न देखो ऐसे।। इस कृति में एक से बढ़कर एक जीवन मूल्यों की शिक्षा देती कविताएँ हैं।
इस कृति की प्रमुख रचनाएँ:- मुश्किल काम,लेना,बेचैनी,अच्छी सोच,ध्यान,सीता का दुःख, पुरानी किताब ,बातचीत,छत्तीस की जिंदगी चार घड़ी,जलन ,स्वाद जिंदगी के, हम तुम,ईर्ष्या,मन की आंखें, बातचीत,अच्छी सोच,सेल्फी आदि है।
मन की आंखें कविता में श्रीवास्तव कहती है:- बदला करती है ये आंखें चुगली भी कर जाती। अन्तर्मन की आंखों से हर बात को तुम देखना। लोग बाहरी नज़र से खेल देखते हैं। दुनियां को देखना है तो अंतर के पट खोलना होगा।
असलियत रचना में कवयित्री कहती है”हम बस अपना लाभ देखते,अन्याय भी करते हैं।कुदरत के कुछ नियमों का उल्लंघन भी करते हैं। इंसान ने अपने मतलब के लिए प्रकृति से छेड़छाड़ की जिससे असमय बारिश आना,भूकम्प, मनुष्य ने पेड़ बहुत काटे, पर्यावरण प्रदूषण बढ़ा दिया।
किताब शीर्षक से लिखी कविता में वह कहती हैं”खुली किताब बन गया है दिल चाहो तो पढ़ सकते हो।न चाहो पढ़ने को तो कोने में रख सकते हो।” श्रृंगार की रचना भी बहुत ही अच्छी लिखी है। दिल को छूती ये रचनाएँ पाठकों को बांधे रखेगी ऐसा विश्वास है।
बातचीत कविता में कमरे के साथी कूलर,घड़ी,शीशा,कैलेंडर,दीवार,पर्स,बिस्तर जैसे प्रतीकों को आधार बनाकर श्रीवास्तव ने सुन्दर रचना का सृजन किया है।
अच्छी सोच रचना में वह लिखती है”अच्छा बोयें अच्छा कांटे।अच्छी सी फसल बना जाएं।
व्यक्ति की जैसी सोच होती है वह वैसा ही बन जाता है। इसलिए सोच को अच्छी रखना चाहिए।
छोटी सी जिंदगी कविता में लिखती है”जीवन रुई का गोला है उड़े कहाँ ये पता नहीं। सचमुच यही सच्चाई है। मृत्यु जीवन का अंतिम सत्य है। हमे पता नहीं कितने दिन की जिंदगी है।
सेल्फी कविता में आजकल की पीढ़ी द्वारा सेल्फी के चक्कर मे रोज रोज बढ़ती घटनाओं को देखते हुए उर्मिला जी ने लिखा कि” सेल्फी जीवन से खेल रही। जो समझो तो भलाई है। बच्चे सेल्फी लेने के चक्कर मे छत से गिर जाते हैं। नदी,तालाब बांध में गिरकर मरने की घटनाएं अखबारों में छप जाती है।
चार घड़ी कविता में श्रीवास्तव लिखती है” प्यार सभी से कर लो जग में भगवान के सब बन्दे। प्यार निभाया फ़र्ज़ निभाया काम न करना गन्दे।।
व्यक्ति की पहचान उसके कर्म से होती है। व्यक्ति को अच्छे कर्म करना चाहिए बहुत अच्छी संदेशपरक रचना लगी।
इस कृति की रचनाओं में चित्रमयता दिखती है। बिम्ब प्रधान रचनाएँ संविदात्मक चित्र लिए अच्छी बन गई है। ये दुनिया, बेबसी ,ये तन्हाई आदि रचनाएँ भी महत्वपूर्ण लगी।
साहित्य जगत में उर्मिला श्रीवास्तव जी की ये कृति अपनी पहचान बनाये इसी कामना के साथ मेरी ओर से बधाई मंगलमय शुभकामनाएं।
98,पुरोहित कुटी,श्रीराम कॉलोनी,भवानीमंडी, जिला झालावाड़, राजस्थान पिन 326502, मोबाइल 7073318074

Language: Hindi
Tag: लेख
464 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मुझे भी लगा था कभी, मर्ज ऐ इश्क़,
मुझे भी लगा था कभी, मर्ज ऐ इश्क़,
डी. के. निवातिया
तुम हो कौन ? समझ इसे
तुम हो कौन ? समझ इसे
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
!! युवा मन !!
!! युवा मन !!
Akash Yadav
सीख
सीख
Sanjay ' शून्य'
हनुमान बनना चाहूॅंगा
हनुमान बनना चाहूॅंगा
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
..............
..............
शेखर सिंह
मिलेंगे इक रोज तसल्ली से हम दोनों
मिलेंगे इक रोज तसल्ली से हम दोनों
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
मौन
मौन
निकेश कुमार ठाकुर
मेरा होना इस कदर नाकाफ़ी था
मेरा होना इस कदर नाकाफ़ी था
Chitra Bisht
ख्वाब टूट जाते हैं
ख्वाब टूट जाते हैं
VINOD CHAUHAN
बह्र .... 122 122 122 122
बह्र .... 122 122 122 122
Neelofar Khan
ॐ शिव शंकर भोले नाथ र
ॐ शिव शंकर भोले नाथ र
Swami Ganganiya
संवरना हमें भी आता है मगर,
संवरना हमें भी आता है मगर,
ओसमणी साहू 'ओश'
मज़लूम ज़िंदगानी
मज़लूम ज़िंदगानी
Shyam Sundar Subramanian
She's a female
She's a female
Chaahat
मेरे दिल की हर इक वो खुशी बन गई
मेरे दिल की हर इक वो खुशी बन गई
कृष्णकांत गुर्जर
कोई नी....!
कोई नी....!
singh kunwar sarvendra vikram
■ जल्दी ही ■
■ जल्दी ही ■
*प्रणय*
समस्त देशवाशियो को बाबा गुरु घासीदास जी की जन्म जयंती की हार
समस्त देशवाशियो को बाबा गुरु घासीदास जी की जन्म जयंती की हार
Ranjeet kumar patre
चंद्र मौली भाल हो
चंद्र मौली भाल हो
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
।। श्री सत्यनारायण कथा द्वितीय अध्याय।।
।। श्री सत्यनारायण कथा द्वितीय अध्याय।।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
साहित्यकार गजेन्द्र ठाकुर: व्यक्तित्व आ कृतित्व।
साहित्यकार गजेन्द्र ठाकुर: व्यक्तित्व आ कृतित्व।
Acharya Rama Nand Mandal
मौन देह से सूक्ष्म का, जब होता निर्वाण ।
मौन देह से सूक्ष्म का, जब होता निर्वाण ।
sushil sarna
"सँवरने के लिए"
Dr. Kishan tandon kranti
*खुशियों की सौगात*
*खुशियों की सौगात*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
किसी ने कहा- आरे वहां क्या बात है! लड़की हो तो ऐसी, दिल जीत
किसी ने कहा- आरे वहां क्या बात है! लड़की हो तो ऐसी, दिल जीत
जय लगन कुमार हैप्पी
4809.*पूर्णिका*
4809.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
दिखा दो
दिखा दो
surenderpal vaidya
'नव कुंडलिया 'राज' छंद' में रमेशराज के 4 प्रणय गीत
'नव कुंडलिया 'राज' छंद' में रमेशराज के 4 प्रणय गीत
कवि रमेशराज
*यह भगत सिंह का साहस था, बहरे कानों को सुनवाया (राधेश्यामी छ
*यह भगत सिंह का साहस था, बहरे कानों को सुनवाया (राधेश्यामी छ
Ravi Prakash
Loading...