*पुस्तक समीक्षा*
पुस्तक समीक्षा
पुस्तक का नाम: तू ही प्राणाधार (कुंडलिया संग्रह)
कवि: शिव कुमार चंदन सीआरपीएफ बाउंड्री वॉल, निकट पानी की टंकी, ज्वाला नगर, रामपुर, उत्तर प्रदेश 244 901
मोबाइल 6397 338850
प्रकाशन वर्ष: 2024
प्रकाशक : आस्था प्रकाशन गृह
89 न्यू राजा गार्डन, मिठ्ठापुर रोड, जालंधर, पंजाब
दूरभाष 0181-4627152
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समीक्षक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
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शिव कुमार चंदन अध्यात्म के कवि हैं। आपकी काव्यधारा का स्वर भक्तिमय है। चाहे गीत लिखें अथवा कुंडलियॉं, आपकी रचनाओं में ईश्वर के प्रति आस्था गूॅंजती है। यह आस्था ईश्वर की विद्यमानता के साथ-साथ संसार में सभी प्रकार के सद्भावों के लिए भी है। इसलिए आपकी कुंडलियों का स्वर सकारात्मक है। संसार में अच्छी बातों का प्रचार और प्रसार हो, लोग सन्मार्ग पर चलें और उनमें परस्पर बंधुत्व का भाव जागृत हो; यही आपके काव्य की दिशा है।
कुंडलिया तो एक छंद विधान है, जिसमें हर प्रकार की सामग्री परोसी जा सकती है। आपने अपनी कुंडलियों को विषय के आधार पर चार भागों में बॉंटा है।
एक) चरण वंदना
दूसरा) भक्ति खंड
तीसरा) प्रकृति खंड
चौथा) विविध खंड
‘चरण वंदना’ के अंतर्गत पुस्तक में छह कुंडलियॉं हैं। भक्ति खंड में 68, प्रकृति खंड में 51 तथा विविध खंड में 101 कुंडलियॉं हैं । कुल मिलाकर 226 कुंडलियों का यह संग्रह अत्यंत प्रभावशाली बन गया है।
‘चरण वंदना’ खंड की कुंडलियॉं सरस्वती-वंदना को समर्पित हैं। सरस्वती-वंदना से आरंभ करना स्वयं में कवि की आध्यात्मिक प्रवृत्ति को दर्शाता है। यह निरभिमानता को भी दर्शा रहा है। संग्रह की इस तरह पहली कुंडलिया की मनोहारी पंक्तियॉं इस प्रकार हैं :-
मॉं वाणी वरदायिनी, दे दो यह वरदान/ कथ्य शिल्प लय छंद का, भर अंतस में गान/ भर अंतस में गान, नेह तेरा पा जाऊं/ बहे काव्य रस धार, मात तेरे गुण गाऊॅं/ चंदन रहा निहार, ज्ञान दे वीणा पाणी/ करता करुण पुकार, कृपा कर दे मॉं वाणी (प्रष्ठ 20)
देवी सरस्वती से कवि ने लय, छंद, शिल्प और कथ्य में अलौकिकता भरने का वरदान मांगा है। सच्चे मन से जो मांगते हैं, उन्हें मां शारदा कभी निराश नहीं करतीं।
दूसरा खंड ‘भक्ति खंड’ है। भक्ति ही कवि का भाव है। उसका प्रिय विषय है। इसमें भी रामचरितमानस के प्रति कवि की श्रद्धा स्थान-स्थान पर प्रकट हो रही है। रामचरितमानस के संबंध में कवि ने सुंदर कुंडलिया लिखी है:-
पाकर दर्शन राम के, पुलकित हुआ शरीर/ रामचरितमानस सदा, हरें जगत की पीर/ हरें जगत की पीर, राम जन-जन के प्यारे/ रखें भक्त का ध्यान, भक्त के पालनहारे/ जय जय सीताराम, भक्त खुश रहते गाकर/ होगा जीवन धन्य, राम के दर्शन पाकर
(पृष्ठ 39)
रामचरितमानस के ही एक पात्र सुतीक्ष्ण हैं । यह ध्यान में खो जाने वाले मुनिराज हैं। इनकी ध्यान-अवस्था का वर्णन एक कुंडलिया के माध्यम से कवि ने किया है। (प्रष्ठ 33)
कागभुसुंडि जी का महत्व और महात्म्य रामचरितमानस के प्रष्ठों पर अंकित है। इनके संबंध में भी एक सुंदर कुंडलिया संग्रह में है। (प्रष्ठ 34)
गहराई से रामचरितमानस की कथा को कुंडलिया छंदों में प्रस्तुत करने से ‘भक्ति खंड’ का स्वरूप निखर आया है।
‘प्रकृति खंड’ की रचनाएं जैसा कि नाम से स्पष्ट है, प्रकृति की उपासना पर आधारित हैं । इनमें प्रकृति की शुचिता के संरक्षण पर भी जोर दिया गया है। वृक्षों की आवश्यकता को कवि ने वाणी दी है। पेड़ों के अंधाधुंध काटने से किस प्रकार उजाड़ आ जाएगा, इसको समझाया है।
एक उदाहरण देखिए:-
शीतल छाया दे रहा, यह बरगद का पेड़/ वर्षों की सुख शांति को, तू ऐसे मत छेड़/ तू ऐसे मत छेड़, धूप से तप जाएगा/ जब आएगी सॉंझ, नहीं खग-दल आएगा/ चंदन हुआ उजाड़, वृक्ष को जब कटवाया/ दिया धूप ने कष्ट, न मिलती शीतल छाया
(पृष्ठ 51)
‘विविध खंड’ में कवि की जनवादी दृष्टि प्रकट हुई है। वह जहां एक ओर शोषक और निर्बल वर्ग का पक्षधर है, वहीं दूसरी ओर समाज में नैतिक अवमूल्यन के दौर को भी भली प्रकार देख और परख रहा है। वह देख रहा है कि बच्चों का बचपन समाप्त हो रहा है। न लोरी है, न कागज की नाव है। लोग घर का खाना छोड़ कर बाजारों का भोजन अधिक पसंद कर रहे हैं। बोतलों में जल गंगा नदी के किनारे ही बिक रहा है। इससे कुंडलिया के रूप में अपनी पीड़ा को कवि ने स्वर दिया है।
एक उदाहरण देखिए:-
जल में अब दिखती नहीं, है कागज की नाव/ लोरी गाने का नहीं, दिखता कोई चाव/ दिखता कोई चाव, भुलाईं लोक कथाएं/ घर की रोटी छोड़, बजारू खाना खाएं/ मोबाइल का दौर, दिख रही ऐसी हलचल/ गंगा के ही पास, बिक रहा बोतल में जल
(पृष्ठ 68)
बेटियों के संबंध में अनेक कवियों ने समय-समय पर बहुत सुंदर रचनाएं लिखी हैं। यह बेटियों को प्रोत्साहित करतीं, उनका हौसला बढ़ाती हैं तथा उनका अभिनंदन करती हैं । शिवकुमार चंदन की एक उत्कृष्ट कुंडलिया भी इसी श्रेणी में है। देखिए:-
बेटी कविता गीत है, बेटी स्वर संगीत/ बेटी देवी सरस्वती, बेटी मन की मीत/ बेटी मन की मीत, मातु कर रही दुलारी/ दो कुल की है लाज, कभी ना हिम्मत हारी/ करे सदा सम्मान, नहीं करती है हेटी/ महके घर परिवार, लाड़ली सब की बेटी
(पृष्ठ 91)
उपरोक्त कुंडलिया में मात्राओं की दृष्टि से तीसरे चरण में ‘सरस्वती’ के स्थान पर ‘शारदा’ लिखना अधिक उचित रहता। मात्राओं की इसी तरह की कुछ अन्य त्रुटियॉं भी सरलता से दूर हो सकती थीं।
पढ़ते-पढ़ते एक स्थान पर इस समीक्षक को अपना नाम पढ़ कर अत्यंत सुखद आश्चर्य हुआ। शिवकुमार चंदन जी लिखते हैं:-
रचते कुंडलिया सदा, कविवर रवि प्रकाश/ अद्भुत रचनाकार हैं, ज्यों आदित्य उजास/ ज्यों आदित्य उजास, भक्ति रस-धार बहाते/ कल-कल बहती गंग, प्रेम से सभी नहाते/ लेखन करते नित्य, चाटुकारों से बचते/ साहित्यिक आयाम, छंद कुंडलिया रचते
(पृष्ठ 96)
नतमस्तक हूॅं शिव कुमार चंदन जी की आत्मीयता के प्रति। प्रशंसनीय है कविवर की साहित्य साधना। काव्य की विभिन्न विधाओं में महारत हासिल कर लेना सरल नहीं होता। लेकिन गीतकार के रूप में सुविख्यात होने के उपरांत कुंडलिया छंद पर आपकी पकड़ निरंतर मजबूत होने का प्रमाण प्रस्तुत कुंडलिया संग्रह ‘तू ही प्राणाधार’ प्रस्तुत कर रहा है। अत्यंत प्रसन्नता के साथ कृति का स्वागत है।