Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
17 Oct 2022 · 3 min read

*पुस्तक समीक्षा*

पुस्तक समीक्षा
पुस्तक का नाम : रामपुर के रत्न
प्रकाशन का वर्ष : 1986
लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
समीक्षक: डा० कुन्दन लाल जैन
________________________
श्री रवि प्रकाश द्वारा लिखित “रामपुर के रत्न” एक संस्मरणात्मक रचना है, जो रामपुर जनपद के उन कतिपय महापुरुषों के जीवन पर प्रकाश डालती है जिन्होंने राजनीतिक, सामाजिक, साहित्यिक आदि जीवन के अनेक क्षेत्रों में सेवा कार्य करके अपनी संगठन शक्ति, व्यवस्था शक्ति तथा कर्मठता का परिचय दिया है। लेखक ने इससे पूर्व उन सज्जनों से साक्षात्कार करके उनकी भेंट वार्ता को “सहकारी युग” पत्रिका में प्रकाशित किया था और फिर उन्हें पुस्तक रूप देकर उन महापुरुषों को स्थायित्व प्रदान कर दिया । ये महापुरुष वस्तुतः राख में दबी चिनगारियों के सदृश ऐसे ऐतिहासिक पुरुष हैं जो भावी पीढ़ी को प्रेरणा दे सकते हैं। इसी कारण मेरी दृष्टि में लेखक का यह सत्प्रयास निश्चय ही अभूतपूर्व एवं स्तुत्य है ।
भले ही लोगों की दृष्टि में यह मौलिक रचना न हो, तथापि यह रचना हमें आज के लोगों को उन मूल्यों से जोड़ने में समर्थ है, जिन्हें हम स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद प्रायः भूल-से चुके हैं। मैं स्वयं एक दर्शक के नाते कह सकता हूॅं कि देश की स्वतंत्रता के लिये उस समय के लोगों में समाज और देश के लिए समर्पण, सेवा, बलिदान और यहाँ तक कि सर्वस्व न्योछावर करने तक की भावना विद्यमान थी, किन्तु आज स्वतंत्रता मिलने के बाद हमने वह सब भुलाकर केवल स्वार्थपूर्ति को ही विशेष महत्व दे दिया है। देश और समाज को पीछे छोड़ दिया है। अतः ऐसे समय में यह रचना हमें निश्चय ही पहले के उन मूल्यों की दिशा में बढ़ने के लिए प्रेरित करेगी। इसी कारण मैं कह सकता हूँ कि इस रचना के सृजन में लेखक ने अपने मौलिक धर्म का निर्वाह बखूबी किया है।
उक्त रचना के सम्बन्ध में डा० ऋषि कुमार चतुर्वेदी के इस कथन से मैं पूर्णतया सहमत हूॅं कि पुस्तक रूप में प्रकाशित होने वाली “ये भेंटवार्ताऍं अलग-अगल होकर भी अपनी समग्रता में एक और अखण्ड हैं क्योंकि इनमें एक समूचा युग प्रतिबिम्बित हुआ है-एक युग जिसमें त्याग और तपस्या को जिया जाता था जिसमें कर्मठता और कर्तव्यपरायणता जीवन का ही दूसरा नाम थे, जिसकी सुगन्ध बिखराते हुए ये पुष्ष रत्न आज भी अपनी रोशनी फैला रहे हैं।”
उसी रोशनी को उजागर करके श्री रवि प्रकाश ने अपनी खोजपूर्ण प्रतिभा का परिचय दिया है । मेरा विश्वास है कि लेखक के इस प्रयत्न से भविष्य में भी यह रोशनी निरंतर प्रकाशित होती रहेगी ।
रवि जी का यह प्रयत्न वास्तव में अनुकरणीय है। यदि उनके अनुकरण पर अन्य लेखक या पत्रकार भी अपने-अपने जनपदों के ऐसे प्रेरणादायक कर्मठ ऐतिहासिक पुरुषों के जीवन-चरित लिख सकें जो आज भी विस्मृति के गर्त में पड़े हुए हैं, तो न केवल उनके दर्शन भावी पीढ़ी के लोगों को सुलभ हो सकेंगे वरन वे उनसे प्रेरणा लेकर अपने स्वार्थी को भूलकर अपने देश-समाज को समृद्ध और बलशाली बनाने की प्रेरणा भी ले सकेंगे ।
यह प्रस्तुत रचना और ऐसी ही अन्य रचनाऍं इतिहासकारों को देश के महापुरुषों का इतिहास लिखते समय प्रेरणास्रोत तो बनेंगी ही, साथ ही उन रचनाओं से उन्हें पूर्ण एवं प्रामाणिक सामग्री भी उपलब्ध हो सकेगी। इनके इतिहास अंधकार में छिपे जाने-अनजाने ऐसे अनेक कर्मठ देश सेवी, समाज सेवी, एवं साहित्यसेवी व्यक्तियों को चिर स्थायित्व प्रदान कर सकेंगे ।
पुस्तक के अध्ययन से ऐसा लगता है कि लेखक ने अपनी पुस्तक वर्णित महापुरुषों से जिस क्रम में साक्षात्कार किया है, उसी क्रम में उन्हें पुस्तक रूप में, निबद्ध कर दिया है। मेरी दृष्टि में यह अच्छा होता कि उन महापुरुषों को देश सेवी, समाज सेवी, साहित्य सेवी, शिक्षा सेवी आदि जैसे वर्णों में रखकर उन महापुरुषों की कर्मठता को रूपायित करते, तो पाठकों को उन लोगों के व्यक्तित्व से परिचित होने में बड़ी सहज सुविधा हो जाती ।
ग्रन्थ की भाषा सरल, सुबोध, परिमार्जित है । शैली में एक प्रवाह है। वर्णनों के अनुकूल भाषा होने से शैली भी सरल और गंभीर है । अतः भाषा-शैली की दृष्टि से सम्पूर्ण रचना सफल कही जा सकती है ।
अन्त में, मैं लेखक को साधुवाद और आशीर्वाद दिए बिना नहीं रह सकता कि वे भविष्य में भी ऐसी रचनाओं द्वारा हिन्दी मॉं-भारती के भंडार को अनेक नवीन रूपों में समृद्ध करते रहें ।
————————————
( यह समीक्षा आकाशवाणी रामपुर से 29-11-1986 को प्रसारित एवं सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक रामपुर उत्तर प्रदेश से 6 दिसंबर 1986 को प्रकाशित हो चुकी है।)

131 Views
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

मूक संवेदना
मूक संवेदना
Buddha Prakash
मेरी खामोशी
मेरी खामोशी
Sudhir srivastava
चिंता अस्थाई है
चिंता अस्थाई है
Sueta Dutt Chaudhary Fiji
ढोंगी देता ज्ञान का,
ढोंगी देता ज्ञान का,
sushil sarna
गीत सुनाता हूं मरघट के सुन पाओगे।
गीत सुनाता हूं मरघट के सुन पाओगे।
Kumar Kalhans
*यूं सताना आज़माना छोड़ दे*
*यूं सताना आज़माना छोड़ दे*
sudhir kumar
One-sided love
One-sided love
Bidyadhar Mantry
गीत गज़ल की बातें
गीत गज़ल की बातें
Girija Arora
कुछ खास शौक नही है मुझे जीने का।
कुछ खास शौक नही है मुझे जीने का।
Ashwini sharma
"कबूतर"
Dr. Kishan tandon kranti
*रामपुर रियासत का प्राचीन इतिहास*
*रामपुर रियासत का प्राचीन इतिहास*
Ravi Prakash
--पुर्णिका---विजय कुमार पाण्डेय 'प्यासा'
--पुर्णिका---विजय कुमार पाण्डेय 'प्यासा'
Vijay kumar Pandey
ख़ुद में भी
ख़ुद में भी
Dr fauzia Naseem shad
4891.*पूर्णिका*
4891.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
तन्हा रात तन्हा हम और तन्हा तुम
तन्हा रात तन्हा हम और तन्हा तुम
Naresh
दर्पण
दर्पण
Kanchan verma
बिन बुलाए कभी जो ना जाता कही
बिन बुलाए कभी जो ना जाता कही
कृष्णकांत गुर्जर
किसी भी क्षेत्र में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले किसी
किसी भी क्षेत्र में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले किसी
पूर्वार्थ
#विश्व_वृद्धजन_दिवस_पर_आदरांजलि
#विश्व_वृद्धजन_दिवस_पर_आदरांजलि
*प्रणय*
"ख्वाबों का सफर" (Journey of Dreams):
Dhananjay Kumar
इस जीवन का क्या है,
इस जीवन का क्या है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
सूर्य देव के दर्शन हेतु भगवान को प्रार्थना पत्र ...
सूर्य देव के दर्शन हेतु भगवान को प्रार्थना पत्र ...
ओनिका सेतिया 'अनु '
ज़िंदगी के मर्म
ज़िंदगी के मर्म
Shyam Sundar Subramanian
तुम - दीपक नीलपदम्
तुम - दीपक नीलपदम्
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
कैफ़ियत
कैफ़ियत
Shally Vij
*दो टूक बात*
*दो टूक बात*
pratibha Dwivedi urf muskan Sagar Madhya Pradesh
खोटा सिक्का
खोटा सिक्का
Mukesh Kumar Sonkar
ध्यान क्या है, ध्यान क्यों करना चाहिए, और ध्यान के क्या क्या फायदा हो सकता है? - रविकेश झा
ध्यान क्या है, ध्यान क्यों करना चाहिए, और ध्यान के क्या क्या फायदा हो सकता है? - रविकेश झा
Ravikesh Jha
अब तक तबाही के ये इशारे उसी के हैं
अब तक तबाही के ये इशारे उसी के हैं
अंसार एटवी
जब दादा जी घर आते थे
जब दादा जी घर आते थे
VINOD CHAUHAN
Loading...