*पुस्तक समीक्षा*
पुस्तक समीक्षा
पुस्तक का नाम : रामपुर के रत्न
प्रकाशन का वर्ष : 1986
लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
समीक्षक: डा० कुन्दन लाल जैन
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श्री रवि प्रकाश द्वारा लिखित “रामपुर के रत्न” एक संस्मरणात्मक रचना है, जो रामपुर जनपद के उन कतिपय महापुरुषों के जीवन पर प्रकाश डालती है जिन्होंने राजनीतिक, सामाजिक, साहित्यिक आदि जीवन के अनेक क्षेत्रों में सेवा कार्य करके अपनी संगठन शक्ति, व्यवस्था शक्ति तथा कर्मठता का परिचय दिया है। लेखक ने इससे पूर्व उन सज्जनों से साक्षात्कार करके उनकी भेंट वार्ता को “सहकारी युग” पत्रिका में प्रकाशित किया था और फिर उन्हें पुस्तक रूप देकर उन महापुरुषों को स्थायित्व प्रदान कर दिया । ये महापुरुष वस्तुतः राख में दबी चिनगारियों के सदृश ऐसे ऐतिहासिक पुरुष हैं जो भावी पीढ़ी को प्रेरणा दे सकते हैं। इसी कारण मेरी दृष्टि में लेखक का यह सत्प्रयास निश्चय ही अभूतपूर्व एवं स्तुत्य है ।
भले ही लोगों की दृष्टि में यह मौलिक रचना न हो, तथापि यह रचना हमें आज के लोगों को उन मूल्यों से जोड़ने में समर्थ है, जिन्हें हम स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद प्रायः भूल-से चुके हैं। मैं स्वयं एक दर्शक के नाते कह सकता हूॅं कि देश की स्वतंत्रता के लिये उस समय के लोगों में समाज और देश के लिए समर्पण, सेवा, बलिदान और यहाँ तक कि सर्वस्व न्योछावर करने तक की भावना विद्यमान थी, किन्तु आज स्वतंत्रता मिलने के बाद हमने वह सब भुलाकर केवल स्वार्थपूर्ति को ही विशेष महत्व दे दिया है। देश और समाज को पीछे छोड़ दिया है। अतः ऐसे समय में यह रचना हमें निश्चय ही पहले के उन मूल्यों की दिशा में बढ़ने के लिए प्रेरित करेगी। इसी कारण मैं कह सकता हूँ कि इस रचना के सृजन में लेखक ने अपने मौलिक धर्म का निर्वाह बखूबी किया है।
उक्त रचना के सम्बन्ध में डा० ऋषि कुमार चतुर्वेदी के इस कथन से मैं पूर्णतया सहमत हूॅं कि पुस्तक रूप में प्रकाशित होने वाली “ये भेंटवार्ताऍं अलग-अगल होकर भी अपनी समग्रता में एक और अखण्ड हैं क्योंकि इनमें एक समूचा युग प्रतिबिम्बित हुआ है-एक युग जिसमें त्याग और तपस्या को जिया जाता था जिसमें कर्मठता और कर्तव्यपरायणता जीवन का ही दूसरा नाम थे, जिसकी सुगन्ध बिखराते हुए ये पुष्ष रत्न आज भी अपनी रोशनी फैला रहे हैं।”
उसी रोशनी को उजागर करके श्री रवि प्रकाश ने अपनी खोजपूर्ण प्रतिभा का परिचय दिया है । मेरा विश्वास है कि लेखक के इस प्रयत्न से भविष्य में भी यह रोशनी निरंतर प्रकाशित होती रहेगी ।
रवि जी का यह प्रयत्न वास्तव में अनुकरणीय है। यदि उनके अनुकरण पर अन्य लेखक या पत्रकार भी अपने-अपने जनपदों के ऐसे प्रेरणादायक कर्मठ ऐतिहासिक पुरुषों के जीवन-चरित लिख सकें जो आज भी विस्मृति के गर्त में पड़े हुए हैं, तो न केवल उनके दर्शन भावी पीढ़ी के लोगों को सुलभ हो सकेंगे वरन वे उनसे प्रेरणा लेकर अपने स्वार्थी को भूलकर अपने देश-समाज को समृद्ध और बलशाली बनाने की प्रेरणा भी ले सकेंगे ।
यह प्रस्तुत रचना और ऐसी ही अन्य रचनाऍं इतिहासकारों को देश के महापुरुषों का इतिहास लिखते समय प्रेरणास्रोत तो बनेंगी ही, साथ ही उन रचनाओं से उन्हें पूर्ण एवं प्रामाणिक सामग्री भी उपलब्ध हो सकेगी। इनके इतिहास अंधकार में छिपे जाने-अनजाने ऐसे अनेक कर्मठ देश सेवी, समाज सेवी, एवं साहित्यसेवी व्यक्तियों को चिर स्थायित्व प्रदान कर सकेंगे ।
पुस्तक के अध्ययन से ऐसा लगता है कि लेखक ने अपनी पुस्तक वर्णित महापुरुषों से जिस क्रम में साक्षात्कार किया है, उसी क्रम में उन्हें पुस्तक रूप में, निबद्ध कर दिया है। मेरी दृष्टि में यह अच्छा होता कि उन महापुरुषों को देश सेवी, समाज सेवी, साहित्य सेवी, शिक्षा सेवी आदि जैसे वर्णों में रखकर उन महापुरुषों की कर्मठता को रूपायित करते, तो पाठकों को उन लोगों के व्यक्तित्व से परिचित होने में बड़ी सहज सुविधा हो जाती ।
ग्रन्थ की भाषा सरल, सुबोध, परिमार्जित है । शैली में एक प्रवाह है। वर्णनों के अनुकूल भाषा होने से शैली भी सरल और गंभीर है । अतः भाषा-शैली की दृष्टि से सम्पूर्ण रचना सफल कही जा सकती है ।
अन्त में, मैं लेखक को साधुवाद और आशीर्वाद दिए बिना नहीं रह सकता कि वे भविष्य में भी ऐसी रचनाओं द्वारा हिन्दी मॉं-भारती के भंडार को अनेक नवीन रूपों में समृद्ध करते रहें ।
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( यह समीक्षा आकाशवाणी रामपुर से 29-11-1986 को प्रसारित एवं सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक रामपुर उत्तर प्रदेश से 6 दिसंबर 1986 को प्रकाशित हो चुकी है।)