Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Aug 2022 · 6 min read

*पुस्तक समीक्षा*

पुस्तक समीक्षा
धर्मपथ (त्रैमासिक पत्रिका): अंक जून 2022
प्रकाशक : उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड फेडरेशन थियोसॉफिकल सोसायटी
संपादक : डॉ शिव कुमार पांडेय मोबाइल 98398 17036
सह संपादक : प्रीति तिवारी
अंक :46
कुल पृष्ठ संख्या: 52
_________________________
समीक्षक :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
_________________________
मैडम ब्लैवेट्स्की की चमत्कारी शक्तियॉं
इस अंक का महत्व मैडम ब्लैवेट्स्की की चमत्कारी शक्तियों से पाठकों को परिचित कराना है । इसका उल्लेख “योग पर कर्नल ऑलकॉट का स्वामी दयानंद से वार्तालाप” शीर्षक लेख में मिलता है । यह लेख कर्नल ऑलकॉट की डायरी के आधार पर लिखा गया है । इसमें अगस्त 1880 में कर्नल ऑलकॉट के स्वामी दयानंद से वार्तालाप का विवरण है । स्वामी दयानंद ने कर्नल ऑलकॉट को उनके प्रश्नों के उत्तर में योग विज्ञान के आधार पर बहुत ही चमत्कारी शक्तियों के बारे में विस्तार से बताया था । इसमें एक उल्लेख मैडम ब्लैवेट्स्की का भी आता है ।
कर्नल ने प्रश्न पूछा : ” स्वामी जी की उपस्थिति में पिछले वर्ष जो चमत्कार बनारस में एच. पी.वी. (मैडम ब्लैवेट्स्की) के द्वारा किए गए थे जैसे कमरे में गुलाब के फूलों की वर्षा और तरह-तरह के संगीत और घंटियों की आवाजों का सुनाई देना ,लैंप की लौ का बढ़ना और फिर धीरे-धीरे कम होते हुए बंद हो जाना आदि वह किस वर्ग में आते हैं ?”पत्रिका में प्रकाशित लेख के अनुसार इसके उत्तर में उन्होंने बताया कि ये योग के चमत्कार थे। यद्यपि उनमें से कुछ नकल करके रचित किए जा सकते हैं और तमाशा दिखाया जा सकता है किंतु वे असली योग के द्वारा थे। (प्रष्ठ 20 – 21)
मैडम ब्लैवेट्स्की के चमत्कारी व्यक्तित्व का ही चित्र हमें एक अन्य लेख “शिमला और कोईरूलियंस” में भी पढ़ने को मिलता है। इसमें शिमला में मिस्टर सिनेट के घर पर थियोसॉफिकल सोसायटी की गतिविधियों का वर्णन है। एक स्थान पर लिखा हुआ है :
“एक रुमाल जिसमें उनका नाम एंब्रायडर्ड किया हुआ था को एक दूसरे रुमाल में बदल दिया, जिसमें मिस्टर सिनेट का नाम एंब्रायडर्ड किया हुआ था ।(प्रष्ठ 36 )
एक अन्य चमत्कार इस प्रकार वर्णित है :
” दो दिन बाद सज्जन के लिए उन्होंने एक अजीब चमत्कार किया । एक छींट के कपड़े का कवर जो कुर्सी में लगा था और उसी पर वह आगंतुक बैठा हुआ था, उसके एक फूल के ऊपर उन्होंने अपना हाथ रखा और वह छाप वहां से गायब हो गई । कपड़े में कोई चुन्नट नहीं थी और उसी फूल की हूबहू नकल दूसरे कपड़े में छप गई । शायद यह कोई माया थी । इस दिन के बाद से कोई डिनर तब तक पूरा नहीं होता था जब तक मेज की आवाज और कहीं से घंटियों की आवाज न आ जाए ।(पृष्ठ 35 )
एक चमत्कार इस प्रकार वर्णित है :
“एक दिन लंच के बाद उन्होंने सभी से हाथों पर हाथ रखवाए और सबसे ऊपर अपने हाथ से ढक लिया । अब सबसे नीचे जो हाथ था, उसके नीचे से मेज पर ठोकर की और धातुओं के टकराने की आवाज निकलने लगी । यहां किसी चतुराई की कोई गुंजाइश नहीं थी ।”(पृष्ठ 35 )
मैडम ब्लैवेट्स्की के कुछ और चमत्कार पत्रिका के इस लेख में हैं। सितंबर 29, 1980 की एक घटना का विवरण पत्रिका के लेख में इस प्रकार है:
” जब हम वहां बैठे बातें कर रहे थे तब एचपीवी ने एक प्रश्न पूछा कि हमारा हृदय सबसे अधिक क्या चाहता है ? मिसेज सिनेट ने कहा कि किसी महात्मा का पत्र हमारी गोद में गिरे ! मिसेज सिनेट को यह मिल गया । एक पेड़ के बीच चढ़ने पर। यह गुलाबी कागज में विचित्र अक्षरों में लिखा हुआ और त्रिभुजाकार मोड़ा हुआ था। एक टहनी से प्रकट हुआ था । उसमें लिखा था, मैं समझता हूं कि मुझसे एक नोट मांगा गया था। आप बताएं कि आप क्या चाहती हैं ? उसमें हस्ताक्षर तिब्बत की भाषा के अक्षरों में थे ।(प्रष्ठ 39)
एक अन्य घटना भी मैडम ब्लैवेट्स्की के चमत्कारी व्यक्तित्व को दर्शाने वाली है । आइए उसको भी पढ़ें । इसमें एक पिकनिक में मैडम ब्लैवेट्स्की ने कप और प्लेट चमत्कार की शक्ति से प्रकट कर दिए थे । दरअसल पिकनिक के लिए केवल छह कप-प्लेट गए थे, जबकि मेहमान सात हो गए । तब किसी ने मैडम ब्लैवेट्स्की से कहा ‘मैडम इस समय आपके लिए एक मौका है कि आज आप एक उपयोगी जादू करें !’ हम लोग इस बेकार के प्रस्ताव पर हंसे किंतु जब एचपीवी ने आधे मन से इसे मान लिया तो सभी के चेहरों पर मुस्कान आ गई और सब ने कहा कि अब वे उस चमत्कार को करें। जो लोग घास में लेटे हुए थे, वह उठकर इसे देखने के लिए एकत्रित हो गए । एचपीवी बोलीं कि इसे करने के लिए हमारे नए मित्र को हमारा साथ देना होगा। वह कुछ अधिक ही तैयार थे । तब उन्होंने उनसे खोजकर कोई औजार लेने को कहा । उन्होंने एक चाकू ले लिया। एचपीवी ने जमीन की ओर गौर से देखा और एक जगह खोजी । जहां खोजने का निर्देश दिया, उन सज्जन ने चाकू की नोक से जोर-जोर से प्रहार किया और पाया कि आसपास के वृक्षों की जड़ें फैली हुई थीं । जब उनको काटकर उसके भी नीचे खोदा, तक पाया कि नीचे सफेद रंग की कोई वस्तु चमक रही थी ।जब उसे खोदा, तब पाया कि वह बिल्कुल उसी प्रकार का कप था जैसे बाकी छह थे ।
मैडम ब्लैवेट्स्की के चमत्कारों की श्रंखला बहुत बड़ी है । इसी लेख में एक अन्य स्थान पर लेखक ने वर्णन किया है :
“लंच के बाद एचपीबी ने एक और कौतुक किया ,जिसने अन्य लोगों की अपेक्षा हमें अधिक चकित किया । वहां उपस्थित लोगों में से एक सज्जन ने कहा कि वह थियोसॉफिकल सोसायटी के सदस्य बनना चाहते हैं किंतु उनकी एक शर्त है कि उन्हें पूरी तरह से भरा हुआ डिप्लोमा तुरंत देने को तैयार हों। यह कोई आसान कार्य नहीं था । यह एक बड़ा आदेश था किंतु उस वृद्ध महिला (मैडम ब्लैवेट्स्की) को कोई फर्क नहीं पड़ा । उन्होंने अपने हाथ चलाए और कुछ ही दूर पर एक झाड़ी की ओर संकेत करके कहा कि जाकर उस झाड़ी में देखें कि क्या वह उस झाड़ी में तो नहीं है ? वृक्ष और झाड़ियां अनेक बार उनका लैटरबॉक्स रही हैं । लेख के लेखक का कहना है कि मुझे पूरा विश्वास था कि यह शर्त पूरी नहीं हो पाएगी किंतु जब वे झाड़ी के पास गए तब उन्हें पूरा भरा हुआ डिप्लोमा और साथ में मेरी हैंडराइटिंग में लिखा हुआ एक कवरिंग लेटर था। मैंने अपनी याद में कभी यह पत्र नहीं लिखा था ।
इन सब बातों से मैडम ब्लैवेट्स्की की चमत्कारी शक्तियां सामने आती हैं। वह थियोसॉफिकल सोसायटी की न केवल संस्थापक थीं बल्कि उसका आधार स्तंभ थीं। अध्यात्म के क्षेत्र में चमत्कारी शक्तियां रास्ते के पड़ाव होते हैं तथा जैसा कि स्वामी दयानंद ने कर्नल ऑलकॉट को बताया कि वातावरण में प्रत्येक वस्तु के कण मिश्रित रूप में विद्यमान हैं । योगी अपने योग अभ्यास से इन्हें प्रकृति से एकत्रित करने की शक्ति अर्जित कर लेता है और उन्हें जो भी रूप देना होता है, उसका चित्र अपने मन में रखता है।” (प्रष्ठ 20)
पत्रिका में रामपुर निवासी स्वर्गीय श्री हरिओम अग्रवाल द्वारा अनुवाद किया गया एक महत्वपूर्ण लेख ‘मृत्यु के बाद क्या?’ शीर्षक से प्रकाशित किया गया है । यह एक अच्छे अनुवादकर्ता के रूप में श्री हरिओम अग्रवाल के परिश्रम, विद्वत्ता और इस नाते उनकी स्मृति को ताजा रखने वाला कार्य है । लेख के अंत में अनुवादकर्ता ने लिखा है : “जन्म और मृत्यु का दुष्चक्र इस प्रत्यक्ष नश्वर संसार में प्रबुद्ध थियोसॉफिस्ट के लिए उपयुक्त नहीं है । थियोसॉफिस्ट को अपनी चेतना का विस्तार करना चाहिए । ….. आत्मसाक्षात्कार की सामान्य प्रक्रिया के द्वारा यहीं और अभी आत्मबोध प्राप्त करें । यदि अभी नहीं तो कभी नहीं ।”(प्रष्ठ 33)
पत्रिका का सर्वप्रथम लेख “रामायण और अवतार से संबंधित कुछ तथ्य और गुह्य ज्ञान” शीर्षक से लिखा गया है ।यह गंभीर लेख काफी हद तक अपूर्ण प्रतीत होता है। अतः: पाठकों को इससे सुस्पष्ट संदेश नहीं मिल पा रहा है।
पत्रिका के अंत में थियोसॉफिकल सोसायटी के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय क्रियाकलापों का विवरण दिया गया है । गंभीर विषयों को चिंतन और मनन की दृष्टि से पत्रिका के माध्यम से प्रस्तुत करने के लिए संपादक-मंडल बधाई का पात्र है।

351 Views
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

गीत ____ मां के लिए
गीत ____ मां के लिए
Neelofar Khan
पिता
पिता
Ashwini sharma
हाइपरटेंशन
हाइपरटेंशन
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
हृदय का रंग
हृदय का रंग
Rambali Mishra
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
बीते दिन
बीते दिन
Kaviraag
नारी जीवन
नारी जीवन
Aman Sinha
मैं वो मिथिला कुमारी हूँ - कोमल अग्रवाल
मैं वो मिथिला कुमारी हूँ - कोमल अग्रवाल
komalagrawal750
रिश्ते सालों साल चलते हैं जब तक
रिश्ते सालों साल चलते हैं जब तक
Sonam Puneet Dubey
सभी इंसान हैं
सभी इंसान हैं
Shekhar Chandra Mitra
साक्षात्कार- पीयूष गोयल लेखक
साक्षात्कार- पीयूष गोयल लेखक
Piyush Goel
समझिए बुढ़ापे में पग धर दिये।
समझिए बुढ़ापे में पग धर दिये।
manorath maharaj
"देश के इतिहास में"
Dr. Kishan tandon kranti
*हे शारदे मां*
*हे शारदे मां*
Dr. Priya Gupta
बेशक संघ ने काम अच्छा किया है, आगे भी करेगा।
बेशक संघ ने काम अच्छा किया है, आगे भी करेगा।
Ajit Kumar "Karn"
4076.💐 *पूर्णिका* 💐
4076.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
याचना
याचना
डॉ नवीन जोशी 'नवल'
गुरुवर डे (शिक्षक दिवस)
गुरुवर डे (शिक्षक दिवस)
जय लगन कुमार हैप्पी
"हमारी खामी"
Yogendra Chaturwedi
श्रेणी:हाइकु - डी के निवातिया
श्रेणी:हाइकु - डी के निवातिया
डी. के. निवातिया
!मुझको इतना भी न सता ऐ जिंदगी!
!मुझको इतना भी न सता ऐ जिंदगी!
डॉ.एल. सी. जैदिया 'जैदि'
उसने मुझे लौट कर आने को कहा था,
उसने मुझे लौट कर आने को कहा था,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
नव वर्ष गीत
नव वर्ष गीत
Dr. Rajeev Jain
श्रध्दा हो तुम ...
श्रध्दा हो तुम ...
Manisha Wandhare
*शिक्षक के चरणों को पूजो, वह देश-समाज जगाता है (राधेश्यामी छ
*शिक्षक के चरणों को पूजो, वह देश-समाज जगाता है (राधेश्यामी छ
Ravi Prakash
अयोध्या धाम तुम्हारा तुमको पुकारे
अयोध्या धाम तुम्हारा तुमको पुकारे
Harminder Kaur
प्रीतम दोहावली
प्रीतम दोहावली
आर.एस. 'प्रीतम'
तुम और प्रेम
तुम और प्रेम
पूर्वार्थ
बदलने लगते है लोगो के हाव भाव जब।
बदलने लगते है लोगो के हाव भाव जब।
Rj Anand Prajapati
झूठा प्यार।
झूठा प्यार।
Sonit Parjapati
Loading...