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19 Jan 2018 · 1 min read

पुस्तक समीक्षा-मयूर पीड़ा

कवयित्री : पृथा वशिष्ठ

प्रत्येक इन्सान के हृदय में विचार चलते रहते हैं कुछ स्वयं के लिए तो कुछ औरों के लिए। कुछ बीते इतिहास के प्रति तो कुछ वर्तमान या भविष्य के प्रति। परन्तु उन विचारों या दूसरों की पीड़ाओं को लिपिबद्ध करना या रचना के माध्यम से पाठकों के समक्ष पेश करना भी एक अद्भुत कला मानी गई है।
प्रत्येक कवि या कवयित्री का कविता लिखने या बोलने का अपना अन्दाज़ होता है, कोई अपनी रचना के द्वारा पाठकों का मनोरंजन करते हैं तो कोई शिक्षाप्रद पहलुओं से समाज में नयापन लाने का प्रयास करते हैं।
कुछ ऐसे ही मनोरम, दया, प्रेम, करुणा, आशा व उल्लास के संगम से सुसज्जित है समाज के प्रति सजग एवं ऊर्जावान युवा कवयित्री पृथा वशिष्ठ का प्रथम काव्य-संग्रह ‘मयूर पीड़ा’।
प्रस्तुत संग्रह में ‘भोर’ से लेकर ‘छब्बीस ग्यारह’ तक कुल इकत्तालीस कविताओं में कवयित्री पृथा वशिष्ठ ने गर्भ में पल रही अजन्मी बेटी के दर्द को, फुटपाथ पर गुजर-बसर कर रहे बचपन को, नारी की पीड़ा को, पेट की आग बुझाने वाले मजदूर के अन्दुरूनी दर्द को, जीवन के संघर्ष को, सैनिक के बलिदान एवं पक्षियों की पीड़ा को इस प्रकार से अपने शब्दों में वर्णन किया है जैसे वह उत्सुकता से समाज से प्रश्न करना चाह रही हो कि आखिर ये सब कब तक???

मनोज अरोड़ा
लेखक, सम्पादक एवं समीक्षक
+91-9928001528

Language: Hindi
Tag: लेख
370 Views
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