पुस्तक -कैवल्य की परिचयात्मक समीक्षा
कैवल्य (कविता-संग्रह) – डा. अंजना टंडन
प्रथम संस्करण : 14 सितम्बर 2019
बोधि प्रकाशन
सी-46, सुदर्शनपुरा इंडस्ट्रियल एरिया एक्सटेंशन, नाला रोड, 22 गोदाम, जयपुर -302006
दूरभाष -0141-4041794
ईमेल:bodhiprakashan@gmail.com
मुद्रक : तरू आफ़सेट, जयपुर
मूल्य : रू 150/=
कुल पृष्ठ संख्या -152
“कैवल्य” जैसी अदभुत पुस्तक पढ़ने के दौरान मैं कई बार रोई हूॅं, व्यग्र हुई हूॅं, काॅंप सी गई हूॅं और चौक पड़ी हूॅं| कमाल की कवयित्री हैं डा. अंजना टंडन | मैं बार-बार, मौन होकर सोचती रही, कवयित्री ने कैसे लिखी होंगी इतनी गहरी और संवेदनशील कविताएं। कितना बोली होंगी कवयित्री से उनकी ये रचनाएं, चुपचाप पुस्तक के पन्नों पर सिमटने से पहले! कितना जागी होगी वो रात, जब आई होगी पूरी किताब कवयित्री के हाथों में! हाथ की रेखाएं थरथराई तो जरूर होंगी! कुछ ऐसे भाव जो बार-बार दृश्य रूप में प्रकट हो जाते हैं, वो अक्सर ताक-झाक करते मिले है संवेदनाओं की ओट से! एक पुस्तक का संम्पूर्ण होना कितना अप्रतिम होता है, ये इसको पढ़कर जाना।
एक विशिष्ट नाम की पुस्तक पढ़ने का सुअवसर मिला। (‘कैवल्य’ का अर्थ – केवल उसी का होना) 91 कविताएं, जिसमें ‘अनामिका’ जी बहुत सधी हुई, स्पष्ट भूमिका है। पुस्तक में ‘गोविंद माथुर’ जी की उत्कृष्ट भावाभिव्यक्ति पढ़कर मन में उथल-पुथल होने लगती है। ‘रूचि भल्ला’ जी द्वारा पुस्तक का अनोखा परिचय करवाना भी संवेदनाओं में आतुरता भर गया तथा पुस्तक पढ़ने की तीव्र इच्छा जगा गया। पुस्तक इतनी अच्छी शैली में लिखी गई है कि हर पंक्ति की जीवंतता वैचारिक स्तर को झकझोरती सी प्रतीत होती है।
‘स्मृतियों का मोक्ष’ जो कि प्रथम कविता है पढ़कर मैं दंग रह गई , अविस्मरणीय पंक्तियों ने अन्तर्मन हिला डाला ..
“जिस तरह
हवन की वेदी में धधक कर
यौवन के दिन याद करती हैं
आम और नीम की उम्रदराज लकड़ियां…”
तथा
“सच है अवशेषी स्मृतियों के लिए कोई मणिकर्णिका घाट नहीं होता”
पढ़कर स्वयमेव आँख भर आई …पल भर को मौन सी हो गई मैं… कविताओं को पढ़ते पढ़ते मैं ‘रंगो के बदनाम संबंध’ तथा ‘असफल भाषा’ से गुजरती हुई जब ‘ईश्वर स्त्री ही होगा’ और
‘एक कटोरी लेन-देन’ पर पहुंची तो रचनाएं मेरे व्यक्तित्व पर हावी हो चुकी थीं। पुस्तक की ‘समर्पित सुर’ जैसी कविता मन को बड़ी सादगी से छू लेती है …
“शिशिर भोर
उनींदी मैं
गुलाबी सिहरन
और
उदग्र सी तेरी याद …”
तो वहीं ‘कैवल्य -आठ’ पढ़कर कवयित्री के शब्द चुनाव पर अचम्भित हो जाती हूँ |
कुछ पक्तियाँ देखिये—
“पर
रूपान्तरण का अपना छ्ल प्रपंच था
नदी में सिघाड़ों के साथ कीचड़ भी था”
—o—
“स्वीकार करना है
परत दर परत जमती
साथ चलती काली रातों को ”
इनको पढ़कर ‘बोधि प्रकाशन’ को सहज भाव से शुक्रिया करने को जी चाहा, जिसके प्रबुद्ध प्रकाशन से इतना अच्छा साहित्य प्राप्त हुआ।
बदलते समय की अनोखी आभा से दमकते भावों को इतनी सादगी से शब्दों में पिरोने की कला कवयित्री के अनोखे कलाशिल्प तथा बिंब विधान का प्रभावपूर्ण परिचय कराती है। उदाहरणस्वरूप कुछ पंक्तियां देखिए –
“इस
मृत्यु की परछाईं बन भी
शेष रहूंगी
जितना किसी खाली सीपी में
बचा रहता है समुन्दर”
—
कम शब्दों में यर्थाथ और भविष्य को जोड़ने का हुनर भी लाजवाब असर छोड़ता है। देखिए –
“विदा के साथ
माँ ने दिया ढेरों सामान
—
थमाया एक छाता, और
एक जोड़ी मजबूत चप्पल।”
(मां:चार, अनुभव)
—
पुस्तक को जैसे-जैसे पढ़ती गई वैसे-वैसे मनोभाव विनम्रता से अपना रूप बदलते गये |
‘ढलती उम्र का प्रेम’ पढ़ते-पढ़ते जब ‘अंतिम आग्रह’ पर पहुंची तो भावुक होकर ‘उफ” कह बैठी। रचना तो देखिए..
“बस इतना करना प्रिय
मेरे महाप्रयाण के समय
तुम वो कोने का जलता
सरसों का दीपक बन जाना,
मन का अलख जला …
दैहिक रूप से रीत जाना
मृत्यु के प्रथम छोर तक छोड़
इस जन्म का वादा निभाना।”
—
पढ़कर निःशब्द रह गई मैं। प्रेम और स्त्री के साथ, इहलोक से परलोक तक के अनन्य भावों को अद्भुत चित्रात्मकता के साथ समेटे यह पुस्तक युगों-युगों तक याद की जाएगी। आत्मा को छू लेने वाली इस पुस्तक के लिए कवयित्री असीम शुभकामनाओं की पात्र हैं | पुस्तक का आवरण पृष्ठ भी बहुत प्रभावशाली बन पड़ा है | कवयित्री की पंक्तियों ने जैसे मन के शांत सरोवर में शब्दो से लिपटे कंकड़ो को उछालकर मेरे मन को विचलित कर दिया है। निःसंदेह अलौकिकता का भाव समेटे कविताओं का यह अनोखा संसार साहित्य को एक नवीन दिशा दे पाने में सफल हुआ है। कवयित्री को साधुवाद!
स्वरचित
रश्मि संजय श्रीवास्तव
‘रश्मि लहर’
लखनऊ, उत्तर प्रदेश