पुस्तक समीक्षा : ओ मनपाखी
पुस्तक : ओ मन पाखी
कवयित्री : डॉ. रत्ना शर्मा
कविता जीवन के विविध पक्षों का व्यावहारिक और कलात्मक अंग है। इसलिए एक ओर जहाँ उसमें यथार्थ का दृश्यांकन होता है वहीं दूसरी ओर मस्तिष्क की शिराओं में उथल-पुथल भी होती है। सर्वोत्तोमुखी प्रतिभा की धनी डॉ. रत्ना शर्मा द्वारा रचित ‘ओ मनपाखी’ काव्य-संग्रह में वैसे तो पुरुष, नारी, देश, समाज तथा जीवन पर आधारित कविताएँ हैं, परन्तु नारी अस्मिता को कवयित्री ने विशेष ध्यान में रखते हुए नारी-शक्ति, नारी पीड़ा और नारी तू नारायणी शब्दों को उजागर करने का प्रयाास किया है। कुल पैंसठ कविताओं के माध्यम से डॉ. रत्ना शर्मा ने पाठकों को साहित्य-रस से सराबोर करते हुए कहीं सतयुग, द्वापर के दर्श करवाए हैं तो उन्हीं पंक्तियों में कलियुग के चित्रण को प्रस्तुत करते हुए नारी को न हारने का संदेश भी दिया है।
कड़ी को आगे बढ़ाते हुए रिश्तों की अहमियत का बखान भी है तो साथ-साथ समाज के पहलुओं पर भी कलम चली है। इक्कसवीं सदी की गरीबी रेखा को दर्शाती कविता ‘सिसकता बचपन’ में कवयित्री ने उन बालकों के जीवन पर कलम चलाई है जो आने वाले कल के भावी नागरिक कहलाएंगे लेकिन आज हम उनके प्रति कितने सक्रिय हैं ये उक्त कविता पढऩे पर पता चलता है। इसके बाद नारी-शक्ति को प्रदर्शित करती ‘वीरांगना’ कविता में कवयित्री डॉ. शर्मा कहती हैं कि नारी को कोई कम न समझें क्योंकि समय आने पर वह कोई भी रूप धारण कर सकती है। केवल इतना ही नहीं देश के अन्नदाता की पीड़ा को समझते हुए कविता ‘अन्नदाता’ में जो शब्द वर्णित हैं उसे पढक़र शायद ही किसी की आँख से अश्रुधारा न बहे। अन्तिम पड़ाव में दया की मूर्ति, प्रेम की सागर माँ पर जो बखान है वह कहने-सुनने से परे है। संग्रह में शामिल समस्त कविताए प्रत्येक वर्ग के हृदय में अहम स्थान बनाती प्रतीत होती है।
मनोज अरोड़ा
लेखक, सम्पादक एवं समीक्षक
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