#पुस्तकें
दोहा
ज्ञान शील साहस बढ़ा, लक्ष्य करें साकार।
मीत पुस्तकें आपकी, सच्चा हैं उपहार।।
चौपाइयाँ
मीत पुस्तकों के बन जाओ।
ज्ञान बढ़ाकर ख़ुशियाँ पाओ।।
स्वप्न हितैषी हैं सुखदायी।
बनके देखो तुम अनुयायी।।
भाव भरें ये मंगलकारी।
दुनिया रचती नव उजियारी।।
कपट दूर करती हैं मन का।
हित चाहें ये हर जग जन का।।
डॉक्टर इंजीनियर बनाती।
पंख लगाकर गगन दिखाती।।
महापुरुष भी इनको पढ़ते।
नये भाव पढ़कर फिर रचते।।
जो जितना भी मान करेगा।
वह उतना पद ज्ञान हरेगा।।
समझो सबको यह समझाओ।
आन लिए तुम ज्ञान बढ़ाओ।।
अधिकारों का ज्ञान कराएँ।
सब अर्थों में मान बढ़ाएँ।।
सीख उचित अनुचित की देती।
बदले में पाठक रुचि लेती।।
ज्ञान पात्र है अक्षय इनका।
सदियों देती उत्तर मन का।।
धन मिट जाए ज्ञान नहीं पर।
समझे हरजन मिला सुअवसर।।
आर.एस. ‘प्रीतम’