पुष्प
नवल आज घर से निकला
कमाल आज मैने आंखो से देखा।।
कोमल जिसका एक वदन
काटो में लिपटा उसका मन।।
जीवन क्षण भरिक
उदारता उसकी अधिक।।।।
कर्म पुरण होता तब
सुगन्धित कर देता जग।।
क्षण भर के लिए आता
देव असुर मानव को भाता।।
चाह करे जग सारा
पर पंथ पर नाम तुम्हारा।।
कर्म करे मानव हितकारी
होती जब उसकी बलिहारी।।।
चाह करे वह पुष्प की जैसी
आयू हो भी उससे छोटी।।।
क्षण भर भी न सोच तू मन में
सीख देती प्रकृति भी तुझको ।।।
सूरज चन्दा तारे
सारे ये करम से प्यारे।।
सोच रखेगा पुष्प की जैसी
ख्यति बढेगी उससे भी।।।।