पुष्प बनकर मैं खिलना चाहता हूँ
पुष्प बनकर मैं खिलना चाहता हूँ
पुष्प बनकर मैं खिलना चाहता हूँ
गीत बनकर मैं संवरना चाहता हूँ
कोशिशों को अपनी धरोहर करना चाहता हूँ
कीर्ति के नए आयाम रचना चाहता हूँ
मैं रुकना नहीं , आगे बढ़ना चाहता हूँ
पुष्प बनकर मैं खिलना चाहता हूँ
कुछ ग़ज़ल. कुछ कवितायें रचना चाहता हूँ
सद्विचारों का एक समंदर , रोशन करना चाहता हूँ
गिले – शिकवे छोड़, मुहब्बत से रहना चाहता हूँ
इंसानियत को अपना ईमान बनाना चाहता हूँ
पुष्प बनकर मैं खिलना चाहता हूँ
चीरकर तम को उजाला रोशन करना चाहता हूँ
बेड़ियों को तोड़ आगे बढ़ना चाहता हूँ
कुरीतियों का महल ढहाना चाहता हूँ
मैं एक रोशन सवेरा चाहता हूँ
पुष्प बनकर मैं खिलना चाहता हूँ
हर एक शख्स को मैं अपना बनाना चाहता हूँ
रिश्तों का एक कारवाँ सजाना चाहता हूँ
गीत मैं इंसानियत के गुनगुनाना चाहता हूँ
खुशियों का एक समंदर सजाना चाहता हूँ
पुष्प बनकर मैं खिलना चाहता हूँ
मैं खुद को दुनिया से मिलाना चाहता हूँ
अपना खुद का नया जहां बसाना चाहता हूँ
मैं शिक्षा को संस्कृति बनाना चाहता हूँ
मैं पीर दिलों की मिटाना चाहता हूँ
मुहब्बत का एक कारवाँ सजाना चाहता हूँ
क्यूं कर भूख से बिलख कर दम तोड़ दे बचपन
मैं हर एक शख्स में , इंसानियत का ज़ज्बा जगाना चाहता हूँ
पुष्प बनकर मैं खिलना चाहता हूँ
गीत बनकर मैं संवरना चाहता हूँ
कोशिशों को अपनी धरोहर करना चाहता हूँ
कीर्ति के नए आयाम रचना चाहता हूँ