पुष्प की व्यथा
पुष्प हूँ काँटो में रहना पड़ता है।
टूट कर मिट्टी में मिल जाना पड़ता है।
मेरी सुगंध और सौंदर्य कुछ पल के हैं।
मुरझाने पर मेरा स्थान धरती तल के हैं।
मैं जिनके मान सम्मान एवं प्रेम का प्रतीक समझा जाता हूँ।
पर मुरझाने पर उन्हीं के द्वारा पैरों तले रौंदा जाता हूँ ।
देवी, देवता ,नेता ,अभिनेता, गणमान्य अतिथि सुशोभित होते मुझसे।
फिर अपमानित करते हैं मुझे निकाल फेंककर निकृष्ट कचरा जैसे।
हे ईश्वर तूने मुझे इतना सुंदर क्यों बनाया ?
जगत को सम्मानित करने वाला मेरा अस्तित्व इतना क्षणभंगुर क्यों बनाया ?
मुझसे तो ये काँटे अच्छे हैं जो अपने अस्तित्व की रक्षा तो कर लेते हैं।
पर मुझ जैसे फूल लोगों में खुशियाँ बिखेरते दिन प्रतिदिन जीते मरते रहते हैं।