“कोयल की कूक”
कू-कू-कू क्यों करती हो कोयल?
मुझको आज बता दो तुम!
वृक्ष-वृक्ष, टहनी-टहनी,
एक धुन में गाती हो।
कौन तुम्हारा दोस्त है कोयल?
किसको तुम बुलाती हो?
क्या कोई बिछड़ गया है?
या प्रितम की याद सताती है,
छाया मधुमास अधरों पर,
क्यों विरह राग सुनाती हो?
तेरी कूक भरी आहट सुनकर,
मेरा बिरह, वेदना बढ़ जाती हैं ।
वाह! क्या दोस्त चुना है कोयल?
क्या दोस्ती का, फर्ज निभाती हो!
एक सवाल है! तुमसे साथी ।
सोचकर मुझे बता दो तुम ।
क्यों द्रवित है तेरा अंतर्मन ?
क्यों दुःख, वियोग में जलती हो?
कू-कू-कू क्यों करती हो कोयल?
मुझको आज बता दो तुम।।
बाल कविता
राकेश चौरसिया