पुष्प और अलि
एक उपवन में यूँ खिली एक इठलाती कली,
देख उसको पास में जा पहुँचा आवारा अलि।
मुसका उठा वो उस प्यारी कली को देखकर,
रोज उसको देखने आता वो झूम-झूमकर।
एक दिन ये कली भी पुष्प बन इतराएगी,
पुष्परज इसकी मुझे पीने को मिल जाएगी।
आह! सुंदरता ही इसकी अनोखी कितनी है,
आभा बड़ी आलोकित उषा के आलोक जितनी है।
रोज कली को सँवारने में भ्रमर यूँ लगा रहा,
प्रेम हिय में प्रति कली के उसके पलता रहा।
एक दिन उसका परिश्रम रंग ला गया,
उस कली को भी मचलता यौवन आ गया।
देख पुष्प को अलि ने पुष्परज को बिसरा दिया,
छाँव में पुष्प की ही जीवन यूँ बिता दिया।
बीतते दिन गए पुष्प अब सूखने लगा,
पँखुडियों के बोझ से गात उसका दूखने लगा।
एक दिन का देख मँजर भ्रमर की आँखें फिर गई,
सामने ही उसके पुष्प की पँखुरियाँ बिखर गईं।
होकर विलापरत् अलि यूँ बोला उस फूल से,
जो था धरणि पर पडा़ सना हुआ था धूल से।
देख तेरे पुष्परज का पान मैंने नहीं किया,
फिर भी मुझको छोड़कर जाने का निर्णय तूने क्यूँ किया?
सूखी सी हँसी में पुष्प का अंतिम पटल बोला यूँ कुम्हलाया सा,
मित्र मेरे मोह में तूने इस जग को भी भुलाया क्या!
इस जगत में आने वाला एक दिन चला जाएगा,
तुझको भी जाना मुझको भी जाना, ये चमन ही बस रह जाएगा।
कह इतना यूँ बूढे़ कुसुम ने साँस अपनी ली आखिरी,
सुनके पते की बात अलि की अश्रुधारा चल पड़ी।
जीवन है क्षणभंगुर जो करना है कर गुजर लो,
कल मिले न मिले इस जन्म तो सुकर्म कर लो।
सोनू हंस