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4 Mar 2022 · 8 min read

पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ का आकलन

बदलते भारत की चुनौतियाँ और पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ का आकलन
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पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ को सुनना एक दिलचस्प अनुभव रहा । केवल इसलिए नहीं कि वह एक धाराप्रवाह वक्ता हैं, जोशीले हैं और श्रोताओं के हृदय को स्पर्श करने की कला उन्हें आती है । केवल इसलिए नहीं कि उनके सफेद बाल उनकी प्रौढ़ता को प्रकट करते हैं बल्कि इसलिए कि भारत की वर्तमान परिस्थितियों का जैसा विश्लेषण वह कर रहे हैं उसे न तो आश्चर्यजनक कहा जा सकता है और न ही काल्पनिक । यथार्थ हूबहू बहुतों को वैसा नहीं लग सकता , जैसा कि पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ बता रहे हैं । लेकिन यह आकलन की बात है कि पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ की दृष्टि में हम इतिहास के उसी दौर से गुजर रहे हैं , जो 1946 – 47 में हमारे सामने था।
पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ स्पष्ट कहते हैं कि देश गृहयुद्ध की ओर जा रहा है ।1946 में उनके मतानुसार जब चुनाव हुए तब मुस्लिम लीग ने भारत में काफी समर्थन प्राप्त किया था ,जो इस बात का द्योतक था कि पाकिस्तान के निर्माण के पक्ष में काफी लोगों की सोच थी । उसके बाद देश का विभाजन हुआ और दो हिस्सों में भारत बँट गया । पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ स्पष्ट रूप से यह कहते हैं कि विभाजन और जल्दी विभाजन के दोषी प्रमुखता से जवाहरलाल नेहरु रहे। दो राष्ट्रों के सिद्धांत के जिन्ना के विचार को अमली जामा पहनाने के सिद्धांत का पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ के अनुसार परिणाम यह निकला कि एक मजहब के आधार पर पाकिस्तान तो बन गया लेकिन शेष भारत में समस्या ज्यों की त्यों बनी रही। देश में हिंदू-मुस्लिम समस्या में कोई कमी नहीं आई। वर्तमान समय में दिल्ली में चल रहे शाहीन बाग के प्रदर्शन को पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ केवल इस दृष्टि से देख रहे हैं कि इससे एक समस्या प्रकट रूप से सामने आ रही है । वह तो यहाँ तक कहते हैं कि इससे सेकुलरवाद का पाखंड उजागर हो रहा है । उनका कहना है कि यह मानसिकता जितनी ज्यादा उजागर हो, उतना ही बेहतर होगा।
मूल रूप से पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ हिंदुओं को झकझोरने के लिए तथा आत्मचिंतन के लिए प्रेरित करने वाले व्यक्ति हैं । सारी समस्या का मुख्य कारण वह यही मानते हैं कि देश का हिंदू सोया हुआ है तथा वह न तो विभाजन के समय राष्ट्र के सामने उत्पन्न परिस्थितियों को समझ पा रहा था और न ही उसने वर्तमान समय में चीजों को ठीक- ठीक प्रकार से समझा है। एक राष्ट्र के भीतर दो राष्ट्र का सिद्धांत अभी भी चल रहा है। अपनी बात को समझाने के लिए वह बराबर इस बात पर जोर देते हैं कि आपको परिस्थितियों का पता नहीं है, यह सबसे बड़ी चुनौती है ।
उत्सव पैलेस ,रामलीला मैदान कोसी मंदिर मार्ग पर 4 मार्च 2020 बुधवार को सायंकाल 4:00 बजे विचार गोष्ठी का समय था और पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ यहीं से शुरू हुए कि राष्ट्र के समक्ष जो चुनौती है, उस चुनौती से अनभिज्ञ रहना- यह सबसे बड़ी चुनौती है । जो खतरे हैं ,उनको समझना होगा । हो सकता है कि बहुत से शाहीन बाग अभी और पैदा हों। हो सकता है कि दिल्ली प्रांत के सामान अनेक स्थानों पर पराजय हो, लेकिन समस्या भारत के राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने यह है कि वह जितनी तेजी के साथ राष्ट्रीय विचारधारा के साथ जो बदलाव देश में लाना चाहता है , देश का राष्ट्रीय जनमानस उतनी तेजी के साथ नहीं बदल पा रहा है । यही मोदी की कमजोरी है ।
पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक हैं और उनका मानना है कि नरेंद्र मोदी अपनी मर्यादित भाषा में और संविधान के दायरे में रहते हुए जिस शब्दावली का प्रयोग कर रहे हैं , उसका अर्थ यही है कि वह देश को बदलना चाहते हैं और बहुत तेजी के साथ बदलना चाहते हैं । पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ का मानना है कि देश इस समय सुरक्षित हाथों में है और पिछले 70 वर्षों में जिस प्रकार से भारत के सनातन स्वरूप को पर्दे के पीछे ले जाने का कार्य हुआ है ,अब उसमें बदलाव आ रहा है तथा तेजी के साथ भारत अपने वास्तविक स्वरूप में प्रगट हो रहा है । पिछले 70 वर्ष तुष्टीकरण के वर्ष रहे हैं । अब ऐसा नहीं है । उनका कहना है कि यह केवल मोदी जी का नेतृत्व है, जिसके कारण कश्मीर को धारा 370 से मुक्ति मिल पाई। वास्तव में कश्मीर का विलय पूर्ण रूप से भारत में धारा 370 हटाने के बाद संभव हो सका। वोटों के लालच में तथा वोट बैंक को बनाए रखने के चक्कर में मुस्लिम-परक नीतियों को लागू किया गया ,जो देश के लिए घातक सिद्ध हुआ। अब क्योंकि बदलाव आ रहा है अतः उस बदलाव से जिनको नुकसान पहुँच सकता है अथवा पहुँच रहा है, उनका कुपित होना स्वाभाविक है । शाहीन बाग इसी को दर्शा रहा है ।
सबसे मुख्य कार्य जन चेतना को जगाना है । यह कार्य अब तेजी से आगे बढ़ रहा है। और इसी के साथ चुनौतियाँ सामने आ रही हैं ।अब तक टेलीविजन पर चर्चाओं में जहाँ आतंकवाद तथा अलगाववाद को प्रश्रय देने वाली विचारधारा हावी रहती थी , वहीं अब स्थिति पलटती हुई नजर आ रही है । कश्मीर में लाखों की संख्या में कश्मीरी पंडितों को वहाँ से निकाल दिया गया। कई हजार मारे गए लेकिन देश के तथाकथित सेकुलर व्यक्तियों को यह शोक का कोई कारण नजर नहीं आया। तब हम इसे कैसे मान लें कि यह वास्तविक भाईचारे की स्थिति को दर्शा रहा है ? आज भारत ने अपनी ताकत का दुनिया को अहसास कराया है और भारत को विश्व गुरु के वैभव के ऊँचे स्थान पर ले जाने वाली ताकतें सत्ता के शीर्ष पर बैठी हुई हैं।
हमें इस बात को देखना चाहिए कि राष्ट्र के आमूलचूल स्वरूप में परिवर्तन करने वाले कार्यक्रमों को हमें समर्थन देना है तथा इसी के हिसाब से देश को तैयार करना है। जीएसटी , इनकम टैक्स ,बिजली- पानी के बिल आदि में कटौती जैसे प्रश्न गौण हो जाते हैं तथा राष्ट्र निर्माण के विभिन्न प्रश्नों पर ध्यान केंद्रित करना होगा ।
प्रधानमंत्री ने देश से लाल किले से वायदा किया था कि जनसंख्या नियंत्रण के बारे में काम होगा। इसी तरह समान नागरिक संहिता का प्रश्न है । उस पर भी बहुत जल्दी कदम बढ़ाए जाने की आवश्यकता है । भारत के मूल स्वरूप को नष्ट करने का प्रयत्न जिस प्रकार से पिछले 70 वर्षों में होता रहा , पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ की यह पीड़ा बार-बार उनके भाषण में मुखर हुई ।
आजादी के बाद विक्रम संवत को भारत के राष्ट्रीय कैलेंडर के रूप में स्थान मिलना चाहिए था , लेकिन उसके स्थान पर अंग्रेजों द्वारा चलाए जाने वाले कैलेंडर को ही प्रमुखता के साथ भारत पर लाद दिया गया । चीजों में बदलाव कैसे आएगा ?वह प्रश्न करते हैं।अभी भी जो संस्थाएं हैं और व्यवस्थाएँ हैं, वह डरी हुई हैं और पुराने ढर्रे पर चल रही हैं।
राष्ट्र विरोधियों के विरुद्ध कठोर निर्णय लेने में अभी भी सरकार को पर्याप्त समर्थन संस्थानों से नहीं मिल पा रहा है ।आपको- उन्होंने जन समुदाय से कहा कि झूठे प्रचार से लड़ना है अपना भ्रम दूर कर देना है और जो तथ्य हैं तथा देश के जो हालात हैं उनको भली प्रकार से समझ लेना है । यह सबसे बड़ी चुनौती है ।
महिलाओं से उन्होंने कहा कि आप सोना पहनने के पीछे मत भागिए। सोना पहनना बंद कर दीजिए और लोहा पहनिए। आप जीजाबाई बनिए और छत्रपति शिवाजी जैसी वीर संतानों की निर्माता बनिए। एक महान राष्ट्र तभी निर्मित होता है , जब वहाँ कोई भी महिला ,कारण चाहे कुछ भी हो, रोती हुई दिखाई न दे । महिलाओं को अपने बेटे और बेटियों का दोस्त बनकर बदलते हुए परिप्रेक्ष्य में जीवन जीना होगा , ताकि कोई उसे भगाकर न ले जाए।
. सबसे ज्यादा जोर पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने इस बात पर दिया कि उनके शब्दों में ” जाति की पहचान को अपने घर की चौखट से बाहर मत निकालिए “। आप जिस जाति के हैं, केवल घर के भीतर रखिए ।उसके बाहर जब भी आप जाएँ , तो एक सनातनी व्यक्ति के रूप में ही बाहर निकलिए अर्थात जाति व्यवस्था को पूरे तौर पर समाप्त करना जरूरी है । दलितों से प्रेम करें तथा उनके हाथ का पानी पिएँ।
पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने नरेंद्र मोदी की इस दृष्टि से भी प्रशंसा की कि उन्होंने भारत की असली पहचान को सारी दुनिया के सामने उजागर करने का काम किया । पहले जब राष्ट्राध्यक्ष भारत आते थे तब उनको प्रेम का प्रतीक बताते हुए ताजमहल भेंट किया जाता था लेकिन नरेंद्र मोदी ने भगवद् गीता का उस भाषा में अनुवाद करा कर उस राष्ट्राध्यक्ष को देने का सिलसिला शुरू किया, जो भाषा उस राष्ट्र में बोली जाती है । इस तरह भारत की हजारों वर्ष पुरानी यह पहचान जो गीता के रूप में प्रकट हुई थी, सारी दुनिया में पहुँची।
पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ से पूर्व समारोह में सहवक्ता के रूप में डॉक्टर सिकंदर रिजवी का भाषण हुआ तथा आरंभ ओम योग संस्थान के संस्थापक योगीराज ओम प्रकाश जी के भाषण से किया गया। योगीराज ओम प्रकाश जी ने दो पंक्तियों में अपने विचार प्रकट किएः-
भारत का कुछ नहीं बिगाड़ा, दुश्मन की तलवारों ने
भारत को बर्बाद कराया भारत के गद्दारों ने
पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ के मुख्य वक्तव्य पर केंद्रित यह विचार गोष्ठी श्रोताओं से खचाखच भरी थी ।पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ के मतानुसार भारत के विभाजन के मुख्य दोषी जवाहरलाल नेहरु रहे ।आपने 14 नवंबर को जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन के अवसर पर बाल दिवस न मना कर 26 दिसंबर को बाल दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा, ताकि गुरु गोविंद सिंह के दो बच्चे जो कि दीवार में जिंदा चुनवा दिए गए थे , उनके महान आदर्शों को बच्चों के सामने प्रस्तुत किया जा सके।
पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने इतिहास का अध्ययन करते हुए तथा इतिहास की घटनाओं को सामने रखते हुए उसका वर्तमान घटना चक्र से तुलनात्मक अध्ययन करने के साथ-साथ जो चुनौतियाँ भारत के समक्ष उपस्थित जान पड़ती हैं , श्रोताओं के सामने भरसक प्रयत्न करके रखी हैं । यह जरूरी नहीं होता कि संकट उतने ही बड़े हों जितने कि वे दिखाई दे रहे हैं । हो सकता है चीजें इतना भयावह स्वरूप न लें तथा एक शांतिप्रिय तथा समरसता से ओतप्रोत भारत शीघ्र ही उभर कर सामने आ सके । लेकिन इसमें संदेह नहीं कि पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ द्वारा यथार्थ का जो चित्रण किया गया है , वह पूरी तरह निराधार नहीं है और काफी सतर्क तथा सचेत विचारों के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है। राष्ट्र को विघटित करने वाली शक्तियाँ प्रभावी हैं । पूरी तरह पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ से शायद आप सहमत नहीं हों, , लेकिन इस बात से सभी की सहमति होगी कि चुनौतियों को जिस रूप में और जिस समाधानकारी दृष्टिकोण के साथ उन्होंने प्रस्तुत किया है तथा इस बात पर जोर दिया है कि कम से कम हमें अब नींद से जागकर चीजों को तथा चुनौतियों को समझ तो लेना चाहिए ,इससे सभी लोग सहमत होंगे।
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प्रस्तुतकर्ता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451

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