पुल
उजाले से अंधेरा होता है ,
लेकिन उस पुल पर हर वक्त चहल-पहल रहता है।
न जाने कितनी दूर दराज की गाड़ियां,
नित-दिन गुजरती है यहां।
जब सैर करने निकलती हुं,
पुल के ऊपर से छोटी नदी को देखती हूं।
कितना सुंदर दृश्य लगता है,
टेढ़ी- मेढ़ी नदी के ऊपर पुल खड़ा हुआ है।
किनारों में आदमियों को देखती हूं ,
मछली पकड़ने की कला उनसे सीखती हूं।
उस पुल पर केवल गाड़ियां ही नहीं चलते,
उसके अंदर यात्रियों के सपने भी है पलते ।
उनको अपने गंतव्य पर जाने की जल्दबाजी है,
किसी को सफर पर जाना रोज- रिवाज़ी है।
अंधेरा छा जाने से टिमटिमाते तारे,
और पुल के ऊपर बिजली के बल्ब सारे।
जैसे एकाकार हो जाती है,
अंधेरे में रोशनी की कमी ना आती है।
उस स्थिर खड़े पुल को नित दिन मै निहारती हूं ,
और हमेशा ही उसे चलता हुआ ही पाती हूं ।
जिस पर यात्रियों से भरी बस आगे बढ़ता है ,
मालो से लदे ट्रक धीरे -धीरे चलता है ,
पुल अपना काम बखूबी निभाती है ,
एक छोर से दूसरे छोर पर सभी को पहुंचाती है ।
नीचे नदी भी अपनी मंजिल की ओर बढ़ती है,
और ऊपर मनुष्य भी गंतव्य की ओर चलती है।
पुल बस खड़ा हुआ रहता है ,
जैसे कुछ ना कहकर भी बहुत कुछ कहता है।
उत्तीर्णा धर