पुलिस की दस्तक
उस रात पुलिस की जो दस्तक पड़ी थी //
हिर्दय मे डर की नदिया बह पड़ी थी //
धडकन थी जोरो की, चेहरे की तोत्ते उड़े पड़ी थी //
हर आहट-आवाज, बस पुलिस की ही लगी पड़ी थी //
मन था भयभीत, जिंदगी दाँव पर पड़ी थी //
उस रात हुआ डर का सबसे बड़ा अहसास,
चिंताओं की पहाड़े टूट पड़ी थी //
मानो छोड़ गया हो हमें कोई बेसहारा, सूखी उम्मीद सामने पड़ी थी //
कल था पेपर का दिन, और दर पर पुलिस आके खड़ी थी //
:~कविराज श्रेयस सारीवान