पुलवामा वीरों को नमन
पुलवामा वीरों को नमन
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ललकार के लड़ना सीखा है,
कभी पीठ पर वार नहीं करते।
हम भारत माँ के सेनानी,
रण में मरने से नहीं डरते।
जब हम हथियार उठाते हैं,
दुश्मन का बचता नाम नहीं।
तुम छिप के घात लगाते हो,
ये वीरों का है काम नहीं।
लड़ने की चाह है जगी अगर,
तुम ललकारो हम ललकारें।
पर चुपके चुपके चोरी से,
न तुम मारो न हम मारें।
कभी पाक में बैठे बापों से,
मेरी शौर्य कहानी सुन लेना।
जो भी रणक्षेत्र तुम्हें भाये,
अपनी मर्जी से चुन लेना।
जितने संग्राम हुये खुल के,
सीमा से तुम्हें भगाया है।
हर बार युद्ध में हारे हो,
जब भी हथियार उठाया है।
छिप करके था प्रहार तेरा,
बुझदिल समान है बात किया।
चोरों की भाँती चुपके से,
वाहन पर है आघात दिया।
धोखे से मारा गद्दारों,
आते समक्ष दिखला देते।
तुम होते कितने फन्ने खां,
वहीं धरती में दफना देते।
होती गर जंग सामने से,
पुलवामा कथा और होती।
लाशों में लाश गिराते हम,
सालों तक औलादें रोती।
हे! मां के लाल प्रणाम मेरा,
तुमने अपना हक़ अदा किया।
उन वीरों को श्रद्धा अर्पण,
जिसने माटी को लहू दिया।
– सतीश ‘सृजन’