पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि
कविता में हैं आँसू मेरी आँखों के ।।
लिखी आज जो मैंने नाम शहीदों के।।
छिपे इसी में दर्द राखियों के भी है।
बिछे इसी में खाली दामन माँओं के।।
टूट गई है लाठी बूढ़े बाबू की।
दर्द छिपाये बैठे दिल के छालों के ।।
सूनी सूनी इसमें आंखें बचपन की ।
बिखरे बिखरे मोती उनके सपनों के।।
अब भी इस कविता के पन्ने गीले हैं ।
उजड़ गये सिंदूर जहाँ पर माँगों के।।
अंधेरा ही अंधेरा है जगह जगह।
बुझे वहाँ पर हैं चराग परिवारों के।।
दिल भारी है,मौन मुखर, पलकें गीली ।
पड़ने लगे अकाल आज तो शब्दों के ।।
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद