पुरुष
फौलाद से निर्मित पुरुष,तू हौसला खोना नहीं।
इंसानियत को रौंदकर,अपकर्म को ढोना नहीं।।
तुझमें दया, ममता नहीं, निष्ठुर महासागर सदा ।
तू दर्द के तूफान से विचलित कभी होना नहीं ।।
तेरा हृदय चट्टान है , तुझमें मृदुलता है कहाँ ?
चीखे कभी जो आत्मा, अंजन कभी धोना नहीं।।
तूने गरल लीला सदा, तू शांत है शिव की तरह।
निज कर्म का निर्वाह कर , बेकार में रोना नहीं।।
किस बात का तुझमें भरा, झूठा अहं लाखों घड़े।
दो- चार दिन मेहमान है, तू राख है, सोना नहीं।।
(जगदीश शर्मा)
०८०३२०२१