पुरुष विमर्श
सब कहते हैं कि लडकियाँ परायी होती हैं
कोई माने या न माने,
लडकियाँ नहीं लड़के पराये होते हैं।
कुछ कहते हैं, मर्द को दर्द नहीं होता
कौन कहता है?
मर्द को दर्द नहीं होता?
दर्द होता है, लेकिन किससे कहे वो
कौन मानता है उसकी?
इसीलिए कहा जाता है कि कानून अंधा है
न्यायालयों की न्यायिक व्यवस्था सड़ी-गली है
इस न्यायिक व्यवस्था के बीच पीसकर
फिर आज एक नौजवान ने
अपनी जान ले ली,
एक सफल वैज्ञानिक, सिस्टम से टूट गया
माँ-बाप और देश ने, एक सफल और
होनहार वैज्ञानिक खो दिया
कुछ दिन पहले सब इंस्पेक्टर हरीश ने
अपनी जान दे दी
प्रोफ़ेसर दीपांशु ने जान दे दी
मुंबई के संदीप पाश्वान ने जान दे दी
तमिलनाडु के वास्को अनिल ने अपनी जान दे दी
कहानी सबकी एक ही थी
न जाने कितना तड़पा होगा वो
कई रात वह जागकर बिताया होगा
नींद भी नही आई होगी उसे
कई दिनों तक भूख भी नहीं लगी होगी उसे
कितने हाथ-पैर जोड़े होंगे उसने
लेकिन बदले में उसे मिला सिर्फ आत्महत्या
कानून में स्त्रियों की भावनाओं का सम्मान था
लेकिन उसी एक तरफा कानून का सहारा लेकर
उसकी पत्नी ने उसका कत्ल कर दिया
उस बच्चे ने आत्महत्या नहीं की
बल्कि उसका खून किया गया है
आज यह एक घर की कहानी नहीं रही
बहुत कमाऊँ बेटों की यही दुर्दशा है
शादी होते ही बहु के लिए पति के घरवाले दुश्मन हो जाते हैं
सास-ससुर बुरे हो जाते हैं और
पति एक एटीएम बनकर रह जाता है
उसे अपने ही औलाद से मिलने नहीं दी जाती है
उसी से मेंटेनेंस लेकर उसी के खिलाफ कानून की
जाल बिछा दी जाती है
इस व्यवस्था में शादी, शादी नहीं बिजनेश हो गया है
दामाद कमाएगा और घर वाले बैठ कर खाएँगे
अपने घर की इज्जत और
माँ-बाप को उत्पीड़न से बचाने के लिए
लड़का सबकुछ बर्दास्त करता है
क्योंकि वह शादी को विजनेस नहीं
दो परिवारों का मिलन समझता है
कहते हैं औरतें माँ होती हैं
तो क्या बाप कुछ नहीं होता?
क्या बिना मर्द के औरतें माँ बन सकती हैं?
वो तो दरिंदी है,
उसके लिए विवाह बाजार है, व्यापार है
उसे तो पैसे से, मतलब था, जान किसी और की गई
उसे अपने भूखे-नंगे, माँ-बाप और भाई का पेट भरना था,
उससे तो इज्जतदार कोठेवालियाँ हैं
जो पैसों के लिए दूसरे मर्द की जान तो नहीं लेती हैं
बच्चे को पालने का अधिकार
कानून सिर्फ माँ को ही क्यों देता है?
बाप को क्यों नहीं?
मेरा यह सवाल देश के कानून से है?
जरा एक बार यह अधिकार बाप को भी देकर तो देखे
आखिर कब तक चलेगा यह कातिलाना
हमला लड़कों पर, कब-तक, कब-तक?
मर्दों का दर्द कौन और कब समझेगा?
कब बन्द होगा ये उत्पीड़न?
कब तक? कब तक?