पुरुष दिवस क्यों नहीं मनाते
पुरुष दिवस क्यों नहीं मनाते ?
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मना लिया है महिला दिवस सबने
पुरुष दिवस क्यों नहीं मनाते हो ?
महिलाओं को देदी है आजादी,
पुरुषों को क्यों गुलाम बनाते हो ?
माना नारी चूल्हे में जलती है,
पर पुरुष भी धूप में जलता है।
मिली है जब आजादी नारी को,
तो पुरुष क्यों सबको खलता है।।
नो मार्च महिला दिवस निश्चित है,
पुरुष दिवस भी निश्चित होता।
अच्छा तो यें दिवस तब होता,
दोनों का दिवस एक दिन होता।।
दोनों के है जब समान अधिकार,
पुरुषों को क्यों नहीं ये मिलता।
जब चम्पा चमेली खिलती है,
तब कमल क्यों नहीं ये खिलता।।
नारी जब पुरुष के बिन अधूरी है,
तब पुरुष दिवस क्यों मजबूरी है।
जब तक पुरुष दिवस नहीं मनेगा
तब तक महिला दिवस अधूरी है।
नर और नारी गृहस्थ के पहिए है,
तभी गृहस्थ की गाड़ी चलती है।
महिला दिवस मना लो केवल,
ये बात पुरुष को खलती है।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम